Friday 23 December 2016

हज का फ़र्ज़ होना और उसकी फ़ज़ीलत

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
हज  के फ़र्ज़ होने और उसकी फ़ज़ीलत के बारे में कुछ अहादीस
  • हुज़ूर अक़दसگ   ने ख़ुतबा पढ़ा और फ़रमाया ऐ लोगो ! तुम पर हज फ़र्ज़ किया गया लिहाज़ा हज करो । एक शख़्स ने अर्ज़ की क्या हर साल या रसूलल्लाह! हुज़ूर ख़ामोश रहे। उन्होंने तीन  बार यही बात कही, हुज़ूरگ ने इरशाद फ़रमाया अगर मैं हाँ कह देता तो तुम पर वाजिब हो जाता और तुमसे न हो सकता। फिर फ़रमाया जब तक मैं किसी बात को बयान न करूँ तुम मुझसे सवाल न किया करो अगले लोग सवाल की ज़्यादती और फिर अम्बिया ے की मुख़ालफत से हलाक हुए। लिहाज़ा जब मैं किसी काम का हुक्म दूँ तो जहाँ तक हो सके उसे करो और जब मैं किसी बात को मना करूँ तो उसे छोड दो.
(सही मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैराک से रिवायत)
  • रसूलुल्लाहگ ने फ़रमाया हज कमज़ोरों के लिए जिहाद है।
(इब्ने माजा उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत)
  • हुज़ूरگ  ने फ़रमाया हाजी अपने घर वालों में से चार सौ की शफ़ाअत करेगा और गुनाहों से ऐसा निकल जायेगा जैसे उस दिन ही माँ के पेट से पैदा हुआ।
(बज़्ज़ार ने अबू मूसाک से रिवायत)
  • हुज़ूर अक़दस گ  ने फ़रमाया रमज़ान में उमरा मेरे साथ हज के बराबर है।
(बुख़ारी व मुस्लिम व अबू दाऊद व नसई व इब्ने माजा वग़ैरह, इब्ने अब्बासک से रावी )
  • रसूलुल्लाह گ  फ़रमाते हैं जो मक्के से पैदल हज को जाये यहाँ तक कि मक्का वापस आये उसके लिए हर क़दम पर सात सौ नेकियाँ हरम शरीफ़ की नेकियों के मिस्ल लिखी जायेंगी, कहा गया हरम की नेकियों की क्या मिक़दार है फ़रमाया हर नेकी लाख नेकी है तो इस हिसाब से हर क़दम पर सात करोड़ नेकियाँ हुईं ।
(इब्ने ख़ुज़ैमा व हाकिम इब्ने अब्बासک से रिवायत)
  • रसूलुल्लाहگ ने फ़रमाया जो हज के लिये निकला और मर गया तो क़यामत तक उसके लिये हज करने वाले का सवाब लिखा जायेगा और जो उमरा के लिये निकला और मर गया उसके लिये क़यामत तक उमरा करने वाले का सवाब लिखा जायेगा और जो जिहाद में गया और मर गया उसके लिए क़यामत तक ग़ाज़ी का सवाब लिखा जायेगा।
(अबू याला अबू हुरैराک से रिवायत)

हज का हुक्म

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक मे फ़रमाता है-

وَلِلّٰہِ عَلَی النَّاسِ حِجُّ الْبَیۡتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیۡہِ سَبِیۡلًؕ
(और अल्लाह का हक़ है लोगों पर उसके घर का हज करना जो उसके रास्ते की ताक़त रखता हो)
 (सूरह आले इमरान, आयत-96)
और फ़रमाया-
وَاَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَۃَ لِلّٰہِؕ
(और पूरा करो हज और उमरा अल्लाह के लिये)
(सूरह अलबक़रा, आयत-196)
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है
طَلَبُ العِلْمِ فَرِیْضَۃٌ عَلٰی کُلِّ مُسْلِمٍ
इल्म का हासिल करना हर मुसलमान  मर्द (और- औरत) पर फ़र्ज़ है।
(सुनन इबने माजा)
ओलमा के नज़दीक इस हदीस-ए-पाक के मुताबिक़ जो इल्म सीखना फ़र्ज़ हैं वो इस तरह हैं।
  • सबसे पहले और सबसे ज़रूरी फ़र्ज़ ये है कि उन बुनियादी अक़ाइद का इल्म हासिल करे । जिनसे आदमी सही अक़ीदा रखने वाला मुसलमान बनता है और जिनके इन्कार या मुख़ालफ़त से काफ़िर या गुमराह हो जाता है।
  • इस के बाद तहारत यानी पाकी और सफ़ाई का इल्म हासिल करे।
  • नमाज़ के मसाइल यानी उस के फ़र्ज़, शर्तें और नमाज़ तोड़ने वाली चीज़ें सीखे ताकि नमाज़ सही तरह अदा कर सके।
  • रमज़ानुल मुबारक के रोज़ों के मसाइल  ।
  • ज़कात के मसाइल ताकि मालिक-ए-निसाब होने पर ज़कात सही तरह अदा कर सके।
  • साहिब-ए-इस्तिताअत हो तो हज के मसाइल।
  • निकाह करना चाहे तो उस के ज़रूरी मसाइल।
  • व्यापारी (Businessman) के लिये ख़रीदने और बेचने के मसाइल,
  • किसान (और ज़मींदार) के लिये खेती बाड़ी के मसाइल।
  • मुलाज़िम बनने और मुलाज़िम रखने वाले पर मुलाज़मत से मुताल्लिक़ मसाइल।
  • हर समझदार और बालिग़ मुसलमान मर्दो औरत पर उस की मौजूदा हालत के मुताबिक मसले सीखना फ़र्ज़े ऐन है।
  • हलाल और हराम के मसाइल भी सीखना फ़र्ज़ है।

Friday 16 December 2016

सरकारे दो आलम گ की पसन्दीदा ग़िज़ा
आप گ सब्ज़ी खाना पसन्द फ़रमाते ख़ास तौर पर लौकी बहुत शौक़ से खाते, बकरी का गोश्त ख़ास तौर पर उसका दाहिना दस्त (हाथ) आपको पसन्द था। सिरका, सुरीद, खजूर, जौ आपकी ग़िज़ा में था। शहद आपको बहुत पसन्द था। कलौंजी के बारे में आपका फ़रमान है कि इसमें मौत के अलावा हर बीमारी का इलाज है।
लहसुन – प्याज़ खाने का हुक्म
कच्चा लहसुन प्याज़ खाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है और मुँह में बू पैदा करता है पका हुआ खाने में हरज नहीं।
खाने के बाद प्लेट में खाना छोड़ना
ज़रा सोचिए एक दावत में एक हज़ार लोग आए और हर एक ने एक एक निवाला भी छोड़ा तो इस एक हज़ार निवालों से कितने ग़रीबों का पेट भर जाता और अगर पूरा मुल्क या पूरी दुनिया इस पर अमल करे तो शायद लोखों लोगों का पेट भर सकता है। क़ायदा यह होना चाहिए कि प्लेट में उतना ही निकाले जितना खाना चाहता है ज़रूरत हो तो दोबारा निकाल ले जूठा न छोड़ें क्योंकि आजकल लोग दूसरे का जूठा नहीं खाते जब कि मुसलमान का जूठा पाक है बल्कि माँ बाप का या किसी बुज़ुर्ग का झूठा तो बरकत वाला है। किसी को कोई ऐसी बीमारी है जिससे कराहियत हो तो उसका जूठा न खायें।
खाने में ऐब लगाना या कमी निकालना
खाने में ऐब लगाना नहीं चाहिए अच्छा लगे तो खायें और अच्छा न लगे तो न खायें। खाने में ऐब लगाना या कमी निकालना सुन्नत के ख़िलाफ़ है।
ख़ूब पेट भर कर खाना
पेट का एक तिहाई खाने के लिए एक तिहाई पानी के लिए एक तिहाई हवा के लिए रखें। जब ख़ूब भूख लगे तब खायें और थोड़ी सी भूख बाक़ी रहे तो खाना छोड़ दें यह सेहत के लिए बहुत अच्छा है लेकिन अगर उसे यह अन्देशा है कि शाम का खाना देर में मिलेगा या कल का रोज़ा अच्छी तरह रख लेगा तो पेट भर का खा लेने में हरज नहीं, अगर मेहमान के साथ थोड़ा ज़्यादा खा लिया तो हरज नहीं या इबादत के लिए ताक़त हासिल करने के लिए भी जाइज़ है। लेकिन इतना भी न खायें कि पेट ख़राब हो जाए। मुख़्तसर यह कि नियत सही हो, तरह तरह के मज़े लेने से बचे। कभी कभी भूखा भी रहे यानी फ़ाक़ा कर लिया करे इसके बड़े फ़ज़ाइल हैं कि जब भूखा रहता है तो दुनिया की ख़्वाहिशात उसे नहीं सतातीं और नेकियों की तरफ़ रग़बत होती है ग़रीब की भूख का एहसास होता है जहन्नम में हमेशा भूखा रहेगा यह सोच कर दिल आख़िरत की तरफ़ राग़िब होता है।
इकट्ठे हो कर खाना
इकट्ठे हो कर खाना खाने में बरकत होती है।
खाना आहिस्ता-आहिस्ता खाना
आहिस्ता चबा चबा कर खाना बेहतर है सेहत के उसूल में से है और अगर मेहमान के साथ खा रहा और वह आहिस्ता खा रहा है तो अपने मुसलमान भाई का ख़्याल रखते हुए आहिस्ता खाये, ऐसा न हो कि शर्म की वजह से वह भूखा ही उठ जाए।
गिरी हुई चीज़ को उठा कर खाना
दस्तरख़्वान पर गिरी हुई चीज़ को उठा कर खाने वाले की मग़फ़िरत हो जाती है हाँ उसे साफ़ करके खाना चाहिए।
खाने को फूँक कर खाना
कुछ लोग खाने में फूँक कर खाते हैं यह ग़लत है। खाने को थोड़ा ठंडा करके खाना चाहिए इसमें बरकत है लेकिन खाने या पीने की चीज़ों को फूँक कर खाना नहीं चाहिए। साईंस के ऐतबार से भी यह ग़लत है कि डाक्टर इसे मना करते हैं और जिगर व मेदे के लिए बहुत गर्म खाना नुक़सानदेह है।
छुरी काँटे से खाना
छुरी काँटे से खाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है हाँ अगर शीरमाल बिस्कुट वगै़रह काट कर पेश करना है तो जाइज़ है।
खाना खाते वक़्त कोई आ जाए तो
खाने के लिए झूठमूठ पूछना मना है और खाते वक़्त सलाम करना भी मना है। खाना खाने के लिए सच्चे दिल से पूछना अच्छा है और जिससे पूछा गया तो उसका यह कहना कि ‘बिस्मिल्लाह करो’ मना है लेकिन उसे यह कहना चाहिये कि “बाराकल्लाह” यानी अल्लाह बरकत दे। इसी तरह कुछ लोगों से खाने के लिए पूछा जाता है तो कह देते हैं “भूख नहीं” या “खा कर आया हूँ” अगर झूठ कहता है तो ऐसा करना बुरा है।
खाने में मीठा और नमकीन दोनों तरह के खाने हों तो
अगर मीठा और नमकीन दोनों हैं तो नमकीन से शुरू करे और मीठा बीच में खायें फिर नमकीन बाद में खायें, इसमें सत्तर क़िस्म की बीमारियों से शिफ़ा है।
खाना खाते में चुप रहना
खाना खाते में चुप रहना मजूसियों का तरीक़ा है बीच बीच में जाइज़ बातें करते रहना चाहिए।
निवाला दस्तरख़्वान पर गिर जाये तो
कभी कभी निवाला दस्तरख़्वान पर गिर जाता है तो निवाला उठा कर खा लेना चाहिए। शैतान वसवसा डाले तो यह सोचे कि यह नेमत किसने दी है और अगर निवाला गन्दा होता पाक न होता तो अल्लाह पाक हमें उठाने का हुक्म क्यों देता हमें इस बात पर नज़र रखना चाहिए कि हमें अल्लाह के हुक्म मानने में हमेशा फ़ायादा होगा हमारी समझ में आए या न आए बहुत सी बातें हमारी समझ में नहीं आतीं फिर भी हम उन पर अमल करते हैं।
बरतन और उंगलियों को चाटने वालों को बहुत बुरी निगाहों से देखना
कुछ लोग बरतन और उंगलियों को चाटने को बहुत बुरी निगाहों से देखते हैं यह बहुत बुरी बात है यह सुन्नत है और किसी सुनन्त को बुरा जानना तो बहुत दूर की बात है बल्कि उसका हल्का जानना भी ईमान की कमज़ोरी का सबब है। खाने वाले भी इस बात का ख़्याल रखें के जहाँ यह अन्देशा हो कि ऐसे लोग मौजूद हैं जो इससे बुरी नज़र से देखेंगें तो वहाँ आख़िरी निवाले से प्लेट साफ़ कर ले ताकि लोग सुन्नत की तौहीन से बचें। बरतन अपने चाटने वालों के लिए दुआ करता है कि ऐ अल्लाह जिस तरह इसने मुझे शैतान से बचाया है तू इसे जहन्नम से बचा ले। साईंस ने भी साबित कर दिया है कि विटामिन भारी होने की वजह से बरतन में नीचे बैठे होते है लिहाज़ा बरतन चाटने के फ़ायदे साईंस ने भी बताये।
अगर बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जायें
दस्तरख़्वान नहीं उठाया गया है तो एक निवाला बिस्मिल्लाह पढ़ कर खा लें और दस्तरख़्वान उठा लिया गया है तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर उंगलियाँ चाट लें और पूरा पढ़ें (بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ)
खाने के आदाब
  • खाने से पहले और बाद में गट्टों तक हाथ धोना चाहिए।
  • बिस्मिल्लाह (بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ) से खाना शुरू करें, अगर बिस्मिल्लाह न पढ़ी जाए तो शैतान शरीक हो जाता है।
  • खाने से पहले ये दुआ पढ़ ली जाये तो बीमारियों से बचा रहेगा और अगर खाने में ज़हर भी होगा तो इंशा अल्लाह असर नहीं करेगा-
بِسْمِ اللّٰہِ الَّذِیْ لَایَضُرُّ مَعَ اسْمِہِ شَیْءٌ فِی الْاَرْضِ وَلَا فِی السَّمَآءِ یَاحَیُّ يَاقَیُّوْمُ
(अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जिसके नाम की बरकत से ज़मीन और आसमान की कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। ऐ हमेशा से ज़िंदा व क़ायम रहने वाले।)
  • बैठ कर, जूता उतार कर खाना खायें और बायाँ पैर बिछा दें और दाहिना पैर खड़ा रखें या सुरीन (कूल्हों) पर बैठें या दोनों पैर खड़े रखें।
  • खड़े होकर न खायें।
  • दस्तरख़्वान बिछा लेना चाहिए।
  • दाहिने हाथ से तीन उंगलियों से खाना चाहिए बायें से न खायें क्योंकि शैतान बायें से खाता है।
  • तकिया लगा कर या नंगे सर खाना आदाब के ख़िलाफ़ है, बायें हाथ पर टेक लगा कर खाना भी मकरूह है।
  • खाना एक ही तरह का है तो अपनी तरफ़ से खाए इधर उधर हाथ न मारें।
  • खाने के बाद बरतन और उंगलियों को चाट लेना सुन्नत है।
  • खाना खाने के बाद अल्लाह का शुक्र करे और दुआ करें-
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِیْ اَطْعَمَنَا وَسَقَانَا وَجَعَلَنَا مُسْلِمِیْنَ
(अल्लाह तआला का शुक्र है जिसने हमें खिलाया पिलाया और हमें मुसलमान बनाया)
  • खाने के बाद हाथ धोयें और गीले हाथ को मुँह सिर व कलाइयों तक हाथ का मसा कर लें यह खाने के बाद का वुज़ू है।
  • जब तुम में से कोई खाना खाये तो सीधे हाथ से खाए और जब पिए तो सीधे हाथ से पिये कि शैतान उल्टे हाथ से खाता पीता है ।
(सही मुस्लिम)
  • हर शख़्स बर्तन के उसी जानिब से खाए जो उस के सामने हो।
 (सही अलबुख़ारी हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत)
  • इकठ्ठे होकर खाना खाओ और बिस्मिल्लाह पढ़ो तुम्हारे लिये इसमें बरकत होगी
 (सुनन अबू दाऊद, इमाम अहमद, अबू दाऊद, इब्ने माजा, हाकिम और हशी बिन हरब  रज़ी अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत)
  • खाने को ठंडा कर लिया करो कि गरम खाने में बरकत नहीं।
(अल मुसतदरक लिल हाकिम, हाकिम जाबिर रज़ी अल्लाह ताला अन्हा से रिवायत)
  • जब दस्तरख़्वान चुना जाये तो कोई शख़्स  दस्तरख़्वान से न उठे जब तक दस्तरख़्वान न उठा लिया जाये और खाने से हाथ न खींचे अगर्चे खाना खा चुका हो जब तक सब लोग फ़ारिग़ न हो जायें और अगर हाथ खींचना ही चाहता है तो मआज़रत पेश करे क्योंकि अगर बग़ैर मआज़रत किये हाथ रोक लेगा तो उसके साथ जो दूसरा शख़्स खा रहा है शर्मिन्दा होगा और वह भी हाथ रोक लेगा और शायद उसके खाने की हाजत अभी बाक़ी हो।    
  • खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो ,इस में तुम्हारे लिए राहत है।
 (मिश्कात अल मसाबिह, अनस बिन मालिक ؓ से रिवायत)
  • जिस खाने पर बिस्मिल्लाह न पढ़ी जाये इस खाने को शैतान अपने लिए हलाल समझता है ।
(सही मुस्लिम, हज़रत हुज़ैफ़ा چ से  रिवायत )
  • जब तुम में से कोई खाना खाए तो उसे चाहिए कि पहले बिस्मिल्लाह पढ़े ।अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाये तो यह कहेबिस्मिल्लाहि अव्वलुहू  वा आख़िरुहु
(सुनन अबू दाऊद, हज़रत आईशा सिद्दीक़ा چ से मर्वी )
खाना खाने के बारे में कुछ अहादीस –
  • जो यह पसंद करे कि अल्लाह ताला उस के घर में बरकत ज़्यादा करे तो उसे चाहिए कि जब खाना हाज़िर किया  जाये तो वुज़ू करे और जब उठाया जाये तब भी वुज़ू करे। उलमा के मुताबिक इस हदीस शरीफ़ में वुज़ू से मुराद हाथ और मुँह की सफ़ाई करना है यानि हाथ धोना और कुल्ली करना।
(सुनन इबने माजा, हज़रत अनस बिन मालिक ؓ से रिवायत)

खाने की सुन्नतें और आदाब

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
खाना अल्लाह ताला की बहुत लज़ीज़ नेअमत है । अगर खाना अहमद-ए- मुज्तबा گ की सुन्नतों के मुताबिक़ खाया जाये तो हमें पेट भरने के साथ साथ सवाब भी हासिल होगा । इस लिए हमें चाहिए कि सुन्नत के मुताबिक़ खाना खाने की आदत डालें ।

Friday 9 December 2016

अल्लाह तआला ने दुनिया में बहुत से नबी और रसूल भेजे। जिन्होंने अपनी क़ौम को इबादत की तरफ बुलाया और एक अल्लाह की इबादत करने को कहा। कुछ लोग उन पर ईमान लाये और उनकी बताई हुई बातों पर अमल किया और अल्लाह के शुक्र गुज़ार बन्दों में शामिल हुए। अल्लाह ने उनको अपने वादे के मुताबिक़ दुनिया और आख़िरत दोनों की नेअमतें अता कीं। लेकिन कुछ लोगों ने अपने नबियों को झुठलाया और अपनी सरकाशी पर डटे रहे ,बुतपरस्ती करते रहे। तो उनको दर्दनाक अज़ाब ने आ घेरा। जिसमे क़ौम-ए-नूह, क़ौम-ए-आद और क़ौम-ए-समूद वग़ैरा का ज़िक्र क़ुरआन पाक में किया गया है। इन्शाल्लाह आगे हम नबियों, उनकी क़ौमों और उनके ज़माने के हालात का बयान करेंगे।
अल्लाह तआला फ़रमाता है-
 “और मैं ने जिन्न और इन्सान को नहीं पैदा किया मगर इसलिये कि वो मेरी इबादत करें , मैं इनसे कुछ रिज़्क़ तलब नहीं करता और न ही चाहता कि वो मुझे खाना दें , बेशक अल्लाह ही बड़ा राज़िक़ बड़ी कुव्वत वाला ज़बरदस्त।”
(सूरह अज़्ज़ारियात, आयत-56-58)
यानि ज़मीन और आसमान और इनकी तमाम नेअमतें इंसानों के लिये पैदा की गईं और यह अल्लाह तआला का अपने बन्दों पर बहुत बड़ा एहसान है। जब बन्दा शुक्रगुज़ारी  करता है तो अल्लाह तआला इनामों को और बढ़ा देता है। ख़ुद क़ुरआन करीम मे अल्लाह ने वादा फ़रमाया है कि “याद रखो कि अगर शुक्रगुज़ार बनोगे तो मैं तुमको और ज़्यादा दूँगा और अगर मेरी नेअमतों का शुक्र अदा नहीं करोगे तो मेरी सज़ा बहुत सख़्त है।”
नबी-ए-करीम گ के इरशाद के मुताबिक़
“अल्लाह तआला ने ज़मीन को इतवार और पीर के दिन, पहाड़ों को और उसमें छिपे हुए ख़ज़ानों और मादनयात (खनिज) को मंगल के दिन पैदा फ़रमाया और पेड़-पौधे, शहर, आबादियाँ, वीरान जगहें बुध के दिन पैदा कीं, जुमेरात को आसमान को पैदा फ़रमाया और जुमे के दिन सूरज,चाँद, सितारे और फ़रिश्तों को पैदा फ़रमाया और जुमे की बची हुई बाक़ी तीन घड़ियों में से पहली घड़ी में लोगों की उमरें और दूसरी घड़ी में आफ़तों और मुसीबतों को पैदा फ़रमाया। तीसरी और आख़िरी घड़ी में आदम ے को पैदा फ़रमाया उनको जन्नत में रिहाइश अता की और फिर फ़रिश्तों को सजदे का हुक्म दिया सब फ़रिश्तों ने सजदा किया लेकिन इब्लीस जो जिन्नों में से था मगर फ़रिश्तों का मुअल्लिम था उसने सजदे से इन्कार किया और उसे इस वजह से उसे जन्नत से निकाल दिया। यह सब जुमे की आख़री घड़ी तक हुआ।”  
ज़मीन और आसमान को बनाने के बारे में बहुत सी आयात बयान की गई हैं लेकिन अब हम इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अपने असली मकसद की तरफ़ आते हैं जिसकी वजह से यह तमाम कायनात बनाई गई।
 कायनात को अल्लाह तआला ने कितने दिन में बनाया?
क़ुरआन पाक में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है कि-
“फ़रमाइये क्या यक़ीनन तुम ज़रूर कुफ़्र करते हो उस (अल्लाह) के साथ जिसने दो दिन में ज़मीन बनाई और तुम उसके लिये शरीक ठहराते हो, यह है अज़मत वाला परवरदिगार सारे जहानों का। और ज़मीन में उसके ऊपर से भारी पहाड़ों को गाड़ दिया और उसमें (बहुत) बरकत फ़रमाई और एक अंदाज़े पर रख दीं उसमें उस (के रहने वालों) की ग़िज़ाएं चार दिन में, जो बराबर हैं तलब करने वालों के लिये। फिर क़स्द (इरादा) फ़रमाया आसमान की तरफ़ और वह धुँआ था तो उसको और ज़मीन को फ़रमाया कि दोनों हाज़िर हो जाओ ख़ुशी से या नाख़ुशी से, दोनों ने कहा हम हाज़िर हुए ख़ुशी से।  तो उन्हें पूरे सात आसमान बना दिया दो दिन में और हर आसमान में उसी आसमान से मुताल्लिक़ कामों का हुक्म भेजा और हमने दुनिया के आसमान को तारों से मुज़य्यन फ़रमाया (यानि सजा दिया) और उसे महफ़ूज़ कर दिया यह अन्दाज़ा मुक़र्रर किया हुआ है बड़े ज़बरदस्त बड़े इल्म वाले का।”
 (सूरह हाम मीम सजदा, आयत- 9-12)
यानि इस आयत में अल्लाह तआला फ़रमा रहा है कि तुम उस ख़ुदा से कुफ़्र करते हो यानि उस ख़ुदा को नहीं मानते जिस ने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया, उसके लिये शरीक ठहराते हो जो दोनो आलम का रब है । इससे यह भी मालूम हुआ कि पहले ज़मीन को बनाया और फिर आसमानों को बनाया।
अल्लाह तआला फ़रमाता है-
 “और वह ही है जिसने रात और दिन और सूरज और चाँद को पैदा किया (चाँद-सूरज) हर एक अपने मदार (कक्षा) में तैर रहे हैं।”
(सूरह अल अम्बिया, आयत- 33)
और अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है कि-
“अल्लाह वही है जिसने पैदा किया तुम्हारे लिए ज़मीन की सब चीज़ों को। फिर मुतावज्जह हुआ(यानि ध्यान दिया) आसमान की तरफ तो ठीक सात आसमान बनाए और वह हर चीज़ को ख़ूब जानता है।”
(सूरह अलबक़राह, आयत- 29)
ज़माना
ज़माना दिन और रात की घड़ियों और चाँद-सूरज का अपनी धुरी पर चक्कर लगाने का नाम है। ज़माना फ़ना होने वाली चीज़ है। और इसको फ़ना करने वाला अल्लाह तआला ही है। जिसने तमाम चीज़ों को पैदा किया।
क़ुरआन पाक में अल्लाह तआला फ़रमाता है –
  • और हम ने रात और दिन (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ बनाईं फिर हमने रात की निशानी मिटा दी और दिन की निशानी को रौशन बना दिया ताकि तुम अपने रब का फ़ज़्ल (रोज़ी) तलाश करो और जान लो बरसों (महीने व सालों) की गिनती और (दूसरा) हिसाब और हमने हर चीज़ को तफ़सील के साथ बयान कर दिया।
(सूरह बनी इसराईल, आयत-12)
  • वह ही है जिसने सूरज को जगमगाता हुआबनाया और चाँद को रौशन और उसके लिये मंज़िलें मुक़र्रर कीं ताकि तुम बरसों (सालों) की गिनती और हिसाब जान लो। अल्लाह ने उसे पैदा नहीं किया मगर हक़ के साथ। अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ वाज़ेह(खोल खोल कर पेश) फ़रमाता है इल्म वालों के लिये। बेशक रात और दिन के बदलने में और आसमानों और ज़मीनों में अल्लाह की पैदा की हुई हर चीज़ में, निशानियाँ हैं डरने वालों के लिये।
(सूरह यूनुस, आयत-5,6)
इन आयात से ये साबित हुआ कि ये सब चीज़ें यानि ज़मीन, आसमान, सूरज, चाँद, सितारे, दरिया, पहाड़, समुद्र, रात दिन वक़्त और ज़माने वग़ैरा को अल्लाह ने पैदा किया। यह सब अल्लाह की मख़लूक़ हैं यानि उसकी बनाई हुई या पैदा की हुई चीज़ें हैं और यह “हादिस” हैं यानि पहले नहीं थी बाद मैं अल्लाह ने  पैदा कीं।

कायनात की तख़लीक़ (रचना)

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ

अल्लाह तआला ने बग़ैर किसी ज़ाती ग़र्ज़ के तमाम मख़लूक़ को पैदा किया। ज़मीन और आसमान को पैदा किया । अल्लाह तआला ने चाँद और सूरज को बनाया, इन्सानों के लिए ज़मीन को बिछाया ताकि वो उसके साफ़ और खुले रास्तों पर चल सकें। आसमान को महफूज़ छत बनाया और इसे बहुत ऊँचा किया और इससे मूसलाधार बारिश बरसाई। एक मुक़र्रर तादाद मे रिज़्क उतारा। चाँद सूरज को निकाला और ग़ुरूब किया जिसके नतीजे में रात और दिन ज़ाहिर हुए। रात को लोगों के आराम के लिए और दिन को रोज़गार हासिल करने के लिये बनाया । चाँद-सूरज का निकलना और छिपना और रात-दिन का आना जाना अल्लाह तआला का अपने बन्दों पर बहुत बड़ा एहसान है।
हज़रत इदरीसے के वारिस
हज़रत इदरीसے के बाद इनके बेटे मतूशलख़ इनके जानशीन बने। ये अपने बाप-दादा के तरीक़े पर चले। मतूशलख़ ने 135 साल की उम्र में अरबा बिन्ते अज़ाज़ील से शादी की जिनसे इनके बेटे लमक पैदा हुए।
अल्हम्दु लिल्लाह हज़रत इदरीसے का बाब मुकम्मल हुआ। अम्बिया-ए-किराम के बारे में कुछ ग़लत रिवायात चली आ रही हैं हमारी कोशिश है कि सही मालूमात आप तक पहुँचाई जाये। जो तारीख़ का हिस्सा आप तक पहुँचाया गया उसमें भी यह एहतियात बरती गई है बाक़ी सब कुछ बेहतर जानने वाला अल्लाह है अगर कोई ग़लती हो गई हो तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे माफ़ फरमाये आमीन!
नेक अमल में पहलः-
एक बार आपका दोस्त फ़रिश्ता आपके पास “वही” लेकर आया कि कुल “औलादे आदम” के बराबर आपके आमाल हैं। आपने सोचा मैं इससे बढ़कर  नेक आमाल करूँ तो आपने फ़रिश्ते से कहा कि “मलाकुल मौत” से कहो कि वह मेरी रूह क़ब्ज़ करने में जल्दी न करे ताकि मैं और नेक आमाल कर सकूँ।
इस फ़रिश्ते ने आपको परों पर बिठा कर चौथे आसमान पर पहुँचा दिया। वहाँ पहुँचे तो मलाकुल मौत को देखा।
फ़रिश्ते ने मलाकुल मौत से उनकी सिफारिश की-  मलाकुल मौत ने पूछा – वह कहाँ हैं? फ़रिश्ते ने जवाब दिया – मेरे बाज़ू पर बैठे हुए हैं।
मलाकुल मौत ने कहा-  “सुब्हानल्लाह” मुझे अभी हुक्म हुआ कि इदरीसے की रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ करो। मैं इस फ़िक्र मे था कि वो ज़मीन पर हैं यह कैसे मुमकिन  है कि मैं उनकी रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ करूँ।
लिहाज़ा आपकी रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ कर ली गई। इसी लिए अल्लाह  तआला ने सुूरह मरियम में इरशाद फरमाया कि-  “हमने उन्हें बुलन्द मुक़ाम पर उठा लिया”।
कुछ उलमा-ए-किराम का मानना है कि उनकी रूह क़ब्ज़ नही की गई बल्कि वह ज़िन्दा ही आसमान पर हैं। लेकिन सही यही है कि उनकी चौथे आसमान पर रूह क़ब्ज़ की गई। (वल्लाहु आलम)
वाज़ और ख़िताबत की शुरुआत
सबसे पहले वाज़ और ख़िताबत की शुरुआत भी आपने ही की। जब हज़रत आदमے इस दुनिया से रुख़्सत हुऐ तो आपने अपनी क़ौम को जमा किया और उनके सामने वाज़ किया जिसमे आपने अल्लाह तआला की फ़रमांबरदारी और शैतान की नाफ़रमानी का हुक्म दिया और क़ाबील की औलाद से न मिलने की नसीहत की। इस तरह आपने बक़ायदा वाज़  करने की बुनियाद डाली।
कपड़े को सीकर पहनना
आपने ही सब से पहले कपड़े को सीकर पहना। इससे पहले जिस्म छुपाने के लिये जानवर की खाल और  ऊन की चादर जिस्म छुपाने के लिये इस्तेमाल की जाती थी।
क़लम से लिखने की शुरुआत और इल्मे रमल की ईजाद
आप क़लम से लिखने वाले पहले शख़्स हैं इसके अलावा आपने “इल्मे रमल” ईजाद किया। यह एक इल्म है जिसमे ज़मीन पर लकीरे खीँच कर छिपी हुई बातों के बारे में मालूम किया जाता है। इससे मुताल्लिक़ एक हदीस में है कि मुहम्मदگसे जब इल्मे रमल के बारे में पूछा गया तो आपने फ़रमाया कि यह एक पैग़म्बर थे जो रेत पर ख़त खींचा करते थे बस जिसका ख़त इनके मुताबिक़ हो जाये उसे अच्छी चीज़ों का इल्म हो जाता है। इसी की वजह से आपका लक़ब “हरमतुल हरामसा” पड़ा। जिसके मानी है “इल्मे नजूम यानि सितारों के इल्म का माहिर।”

Wednesday 7 December 2016

ख़तना
ख़तना सुन्नत है और इस्लामी पहचान है इससे मुस्लिम व ग़ैरमुस्लिम में फर्क़ मालूम होता है इसलिए इसे मुसलमानी भी कहते हैं।
ख़तना का मतलब यह है कि मर्द के आला-ए-तनासुल (लिंग) पर आगे की तरफ़ जो फ़ालतू खाल होती है उसे काट दिया जाता है। हमारे हुज़ूरگ ख़तना किये हुए पैदा हुए। ख़तना बारह साल की उम्र तक कराई जा सकती है। यहूदी अपने बच्चों की पैदा होने के सातवें दिन ख़तना करा देते थे लिहाज़ा उनकी मुख़ालफ़त की वजह से थोड़ा इंतज़ार करना बेहतर है कि आगे के दाँत निकल आयें। बाज़ उलमा ने पैदाइश के सातवें दिन कराना भी जाइज़ बताया है। अगर बच्चा ख़तना हुए पैदा हुआ तो ख़तना की ज़रूरत नहीं। कोई बूढ़ा आदमी ईमान लाया और उसमें ख़तना कराने की ताक़त नहीं तो ख़तना की ज़रूरत नहीं।
‘‘ऐ अबू हुरैरा अपने नाख़ून तराशो, क्योंकि बढ़े हुऐ नाख़ूनो पर शैतान बैठता है’’
(जामा-ए-ख़तीब)
नाख़ून काटने को मसनून तरीक़ा
हाथों के नाख़ून काटने के लिये दाहिने हाथ की शहादत की उँगली (Index Finger) से शुरुआत करनी चाहिये और तरतीब से चुँगली तक सब उँगलियों के नाख़ून काटने चाहिये। फिर बाँये हाथ की चुँगली से शुरु करके तरतीब वार अँगूठे तक सब उँगलियों के नाख़ून काटें और सब से आखि़र में दाहिने हाथ के अँगूठे के नाख़ून काटने चाहिये।
पैर के नाख़ून काटने के लिये वही तरतीब होनी चाहिये जो वुज़ू में उँगलियों की घाइयाँ धोने में रखी जाती है यानि शुरुआत दाहिने पैर की चुँगली से करें और अँगूठे पर ख़त्म करें। बायें पैर में शुरुआत अँगूठे से करें और चुँगली पर ख़त्म करें।
बग़लों और नाफ़ के नीचे के बाल:-
बग़लों और नाफ़ के नीचे के बाल साफ़ करने के लिये बेहतर यह है कि हर आठवें दिन यानि जुम्मे को जब ग़ुस्ल करें तो इन बालों को भी उस्तरे (Razor) से साफ़ कर लें। औरतों के लिये बेहतर है कि किसी साबुन या क्रीम से यह बाल साफ़ करें। इन बालों को साफ़ करने की मुद्दत किसी भी हाल में चालीस (40) दिन ये ज़्यादा नहीं होनी चाहिये।
नाख़ून काटने के लिये भी यही बेहतर है कि हर आठवें दिन दोनों हाथों और पैरों की उँगलियों के नाख़ून काट लेने चाहियें ताकि इसमें मैल या कोई ऐसी चीज़ न फंस जाये जो वुज़ू या ग़ुस्ल करने मे रुकावट बने। मैल अगर वुज़ू/ग़ुस्ल के लिये रुकावट न भी हो लेकिन सेहत के लिये तो ख़तरनाक होता ही है, इसी वजह से आपگ नाख़ून काटने की बहुत ताकीद फ़रमाते आपگ का फ़रमाने आलीशान है।
मूँछोे के बाल:-
मूँछोे के बालों के लिये हज़रत मुहम्मदگ का हुक्म है कि मूँछे कतरवाओ और दाढि़याँ बढ़ाओ और मूँछों को मूँडने का अहादीस में कोई ज़िक्र नहीं मिलता लेकिन मूँछों को कतरवाने में ज़्यादती करनी चाहिये, मूँछों के कतरवाने मे होंठों के ऊपर का हिस्सा लिया जाता है और मूँछों के दोनों तरफ़ के बाल बढ़ाने में कोई हर्ज नहीं।
हज़रत अबू हुरैराؓसे रिवायत है कि नबी-ए-करीमگ ने फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों को बख़्श दे, सिहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, फिर आप گ ने फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों की बख़्शिश फ़रमा, सिहाबा ने फिर अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, आप گ ने फिर फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों की बख़्शिश फ़रमा, फिर अर्ज़ किया गया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, आप گ ने फ़रमाया और बाल कतरने वालों की भी (मग़फि़रत फ़रमा दे)।
मौअल्लिफ़ (Author) के दिल में यह सवाल आता है कि वुज़ू मेें सिर का मसह फ़र्ज़ है हालांकि बालों में मसह करने से सही मसह हो जाता है लेकिन मसह की हक़ीक़त नहीं पाई जाती मगर सिर मुँडाने में।
इसी लिये हज़रत अली करमल्लाह वजहु से मरवी है कि आप रोज़ाना सिर मुँडाया करते थे’’
सिर के बाल मुँडवाने की फ़ज़ीलत
हज़रत मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब ‘सबआ सनाबिल’ में बालों को मुँडवाने (कटवाकर साफ़ कराने) की फ़जीलत बयान करते हुए लिखते हैं कि-
‘‘खु़लाफ़ाए राशिदीन और दूसरे तमाम सिहाबा सिर मुँडाते रहे हैं ऐसे ही तमाम अइम्मा। लिहाज़ा इमाम आज़म अबू हनीफ़ाؒ, इमाम शाफ़ईؒ, इमाम मालिकؒ और इमाम अहमद बिन हम्बल ؒ और तमाम तबक़ात के मशाइख़ के सिर मुँडे हुए थे तो उनकी सीरत की पैरवी करना ही बेहतर और अच्छा है। हदीस शरीफ़़ मे है कि सिर मुँडाने वाले शख़्स को मौत की कड़वाहट, क़ब्र का अज़ाब और क़यामत का डर नहीं होगा। ऐसे शख़्स को अंबिया -ए-किरामےके साथ क़ब्र से उठाया जायेगा और रसूलों के पास जगह दी जायेगी और उसके सिर से जितने बाल जुदा होंगे तो हर बाल के बदले एक फ़रिश्ता पैदा किया जायेगा जो क़यामत तक उस शख़्स के लिये असतग़फ़ार करता रहेगा।
सिर के बालों के बारे में शरई हुक्म यह है कि बाल रखना भी जाइज़ है और कटवाना भी। लेकिन बालों का कटवाना यानि मुँडवाना अफ़ज़ल है और अगर बाल रखे जाएं तो शरीफ़़ों वाले। कोई भी मर्द औरतों की तरह बाल न रखे और ऐसे ही न कोई औरत मर्दों की तरह बाल कटवाये।
फ़ालतू चीज़े जैसे बढ़े हुए नाख़ून और बाल वग़ैरा :- 
बदन में बढ़ी हुई फ़ालतू चीज़ें जिन की वजह से नापाकी या जनाबत दूर नहीं हो पाती उनसे निजात हासिल करने के लिये यह काम ज़रूरी हैं।
(1) सिर के बाल कटवाना/कतरवाना।
(2) मूँछों के बाल कतरवाना।
(3) बग़लों के बाल साफ़ करना ।
(4) नाफ़ के नीचे के बाल साफ़ करना।
(5) नाख़ून काटना।
(6) ख़तना कराना।
(7) दाढ़ी के बाल एक मुट्ठी से ज़्यादा को कतरवाना।
मैल:- 
सिर और दाढ़ी के बालों में जमा होने वाले मैल और जुओं का साफ़ करना मुस्ताहिब है। इनकी सफ़ाई के लिये बालों को धोने, तेल लगाने और कंघा करने का हुक्म है। हज़रत मुहम्मद ﷺ अपने बालों में कभी कभी तेल डालते और कंघा करते।
आपका फ़रमान है कि-
जिसके बाल हों उसे चाहिये कि उनका इकराम करे (यानि देखभाल करे)
(अबू दाऊद)
इसी तरह कानों, दाँतों और नाख़ूनों वग़ैरा में जो मैल जम जाता है उसे साफ़ करना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि जमे हुए मैल से सिर्फ़ सही तरह से पाकी हासिल करने में ही रुकावट नहीं आती बल्कि तरह-तरह की बीमारियाँ होने का भी ख़तरा रहता है।
रतूबतें :-
हमारी नाक और आँखों से ऐसी रतूबतें निकलती हैं जो सूख कर नथनों में या आँखों के कोए में जम जाती हैं जिस की वजह से वुज़ू और ग़ुस्ल सही नहीं होते।

जिस्म की फ़ालतू चीज़ें से पाकी

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
इसमें हम उन चीज़ों का ज़िक्र करेंगे जो नापाक तो नहीं होती मगर सही तरह से पाकी हासिल करने में रुकावट पैदा करती हैं। कभी-कभी तो इन चीज़ों की वजह से वुज़ू और ग़ुस्ल भी सही नहीं हो पाता जिससे इबादतें बर्बाद हो सकती हैं। लिहाज़ा इस पर ध्यान देना ज़रूरी है। यह तीन (3) तरह की होती हैं।
क़ुरआन पाक में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया-
“तो शैतान ने इन्हें इस दरख़्त के ज़रिये फुसलाया और जहाँ वो रहते थे वहाँ से उन्हें अलग कर दिया और हमने फ़रमाया तुम सब नीचे उतरो।”
(सूरह अलबक़राह, आयात- 36 से 37)
अभी फल खाना ही शुरू ही किया था कि जन्नती लिबास उतर गया और वह दोनों, पत्तों से अपना सतर  ढाँपने और शर्मिन्दा होकर इधर उधर भागने लगे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया, ऐ आदम! क्या मुझ से भागते हो अर्ज़ किया- “’नहीं” … “ऐ मेरे रब! बल्कि तुझ से हया करता हूँ। अल्लाह का अताब नाज़िल हुआ कि ऐ आदम! क्या मैंने तुमसे उस दरख़्त के पास जाने से मना नहीं किया था? क्या मैने तुम्हें ख़बरदार नहीं किया था कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है? हज़रत आदम ے फ़ौरन अपनी ग़लती का अहसास करते हुए सजदे में गिर गए और नदामत से अर्ज़ करने लगे-
“ऐ परवरदिगार हम ने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और अगर आप ने अपने फ़ज़्ल व करम से हमे माफ़ न फ़रमाया और हम पर रहम न फ़रमाया तो हम ख़सारा(नुक़सान) उठाने वाले हो जायेंगे।”
(सूरह अलऐराफ़,आयत -23)
अल्लाह तआला जो सब के दिलों के हाल जानता है वह हज़रत आदम ے के दिल की कैफ़ियत को अच्छी तरह जानता था। उसने आप को माफ़ फरमा दिया। लेकिन अल्लाह को आइन्दा के लिए दुनिया को आबाद करना था और नस्ले इन्सानी को बढ़ाना था इसलिए अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے और हव्वा ے को हुक्म दिया कि तुम ज़मीन पर उतर जाओ और वहीं पर रहो और यह बात हमेशा याद रखो कि- “शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है।”
इस के बाद अल्लाह तआला ने फरमाया-
“तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो और जहाँ से चाहो ख़ूब दिल खोल कर खाओ लेकिन इस दरख़्त के पास मत जाना कि हद से बढ़ने वालों में हो जाओगे”
(सूरह अलबक़राह, आयात- 34 से 35)
अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے और हव्वाے को जन्नत में ठिकाना अता फ़रमाया और उन्हें हर तरह की आज़ादी अता फ़रमाई सिवाय एक दरख़्त के पास जाने के। उन्होंने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उस दरख़्त के पास जाने से ख़ुद को रोके रखा फिर इनके दिल में शैतान ने वसवसा डाला और आख़िर कार दोनों से वो खता हो गई जिस से अल्लाह तआला ने उन्हें मना फ़रमाया था। 
हज़रत हव्वा ے की पैदाइश 
जब फ़रिश्तों के सामने इब्लीस का घमण्ड ज़ाहिर हो गया और उस ने घमण्ड और सरकशी पर कमर बांध ली तो अल्लाह तआला ने उस पर लानत फ़रमाई आसमान और ज़मीन की हुकूमत उससे छीन ली और जन्नत की पहरेदारी से भी हटा दिया और फ़रमाया- “तू मरदूद है जन्नत से निकल जा अब क़यामत तक के लिए तुझ पर लानत है।”
इस के बाद अल्लाह ने हज़रत आदमے  को जन्नत में रहने का हुक्म फ़रमाया और इन पर ऊँघ डाल दी यानि उन पर नींद तारी हो गई। फिर इन की बायीं पसली में से एक पसली लेकर हव्वाے को पैदा फ़रमाया। आदमے  जब सोकर उठे तो अपने सिरहाने एक औरत  को खड़ा देखा। उन्होंने पूछा- “तुम कौन हो”…. कहा- “एक औरत” …….  फिर पूछा – “किस लिए पैदा की गई हो” ……वो कहने लगीं- “ताकि तुम मुझ से सकून हासिल कर सको।”
जब फ़रिश्तों को ख़बर हुई तो वो इस औरत को देखने आये और कहा ऐ आदम! इसका नाम क्या है ?…. आदमے   ने जवाब दिया- “हव्वा” ….. इन्होंने फिर पूछा- “ये नाम क्यों रखा?….. कहा- “’इस लिए की यह  “हइ”  यानि ज़िंदा इन्सान से पैदा की गई।” 
अल्लाह तआला ने आदम को तमाम नाम सिखाकर फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया-
अगर तुम सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तो ने कहा अल्लाह तेरी ज़ात पाक है हमें तो सिर्फ इतना ही इल्म है जितना तूने हमें सिखाया पूरे इल्म व हिकमत वाला तू ही है अल्लाह ने आदमے  से फ़रमाया तुम इनके नाम बता दो जब इन्होने बता दिए।  तो फ़रमाया क्या मैं ने तुम्हे पहले नहीं कहा था कि ज़मीन आसमान का ग़ैब मैं ही जानता हूँ और मेरे इल्म में है जो तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। 
(सूरह अलबक़राह, आयात-31 से 33)
यहाँ इस बात का बयान हो रहा है कि अल्लाह तआला ने एक ख़ास इल्म के ज़रिये आदम ے    को फ़रिश्तों पर फ़ज़ीलत दी। यह वाक़िया फ़रिश्तों के सजदा करने के बाद का है। अल्लाह तआला ने फिर इन चीज़ों को फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया अगर तुम अपने क़ौल में सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तों ने यह सुनते ही अल्लाह तआला की बड़ाई, पाकीज़गी और अपने इल्म की कमी बयान की और कहा की हमें तो ऐ खुदावंद! इतना ही इल्म है जितना तूने हमें दिया। तमाम चीज़ो को जानने वाला तो परवरदिगार तू ही है। 
फिर अल्लाह तआला आदमے  की तरफ़ मुतवज्जा हुआ और फ़रमाया इन चीज़ो के नाम बता दो। आपने तमाम चीज़ो के नाम सही-सही बता दिये। इस तरह आदमے की बरतरी फ़रिश्तों पर ज़ाहिर हो गई तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया ”देखो में ने तुम से पहले ही कहा था कि हर खुले और छिपे का जानने वाला मैं ही हूँ। मतलब यह कि इब्लीस के दिल में छिपे तक्कुब्बर और ग़ुरूर को मैं ही जानता हूँ और फ़रिश्तों ने जान लिया कि आदमے  को इल्म व फ़ज़्ल के ज़रिये हम पर फ़ज़ीलत और बरतरी दी गई है।

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