Friday 23 December 2016

हज का फ़र्ज़ होना और उसकी फ़ज़ीलत

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
हज  के फ़र्ज़ होने और उसकी फ़ज़ीलत के बारे में कुछ अहादीस
  • हुज़ूर अक़दसگ   ने ख़ुतबा पढ़ा और फ़रमाया ऐ लोगो ! तुम पर हज फ़र्ज़ किया गया लिहाज़ा हज करो । एक शख़्स ने अर्ज़ की क्या हर साल या रसूलल्लाह! हुज़ूर ख़ामोश रहे। उन्होंने तीन  बार यही बात कही, हुज़ूरگ ने इरशाद फ़रमाया अगर मैं हाँ कह देता तो तुम पर वाजिब हो जाता और तुमसे न हो सकता। फिर फ़रमाया जब तक मैं किसी बात को बयान न करूँ तुम मुझसे सवाल न किया करो अगले लोग सवाल की ज़्यादती और फिर अम्बिया ے की मुख़ालफत से हलाक हुए। लिहाज़ा जब मैं किसी काम का हुक्म दूँ तो जहाँ तक हो सके उसे करो और जब मैं किसी बात को मना करूँ तो उसे छोड दो.
(सही मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैराک से रिवायत)
  • रसूलुल्लाहگ ने फ़रमाया हज कमज़ोरों के लिए जिहाद है।
(इब्ने माजा उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत)
  • हुज़ूरگ  ने फ़रमाया हाजी अपने घर वालों में से चार सौ की शफ़ाअत करेगा और गुनाहों से ऐसा निकल जायेगा जैसे उस दिन ही माँ के पेट से पैदा हुआ।
(बज़्ज़ार ने अबू मूसाک से रिवायत)
  • हुज़ूर अक़दस گ  ने फ़रमाया रमज़ान में उमरा मेरे साथ हज के बराबर है।
(बुख़ारी व मुस्लिम व अबू दाऊद व नसई व इब्ने माजा वग़ैरह, इब्ने अब्बासک से रावी )
  • रसूलुल्लाह گ  फ़रमाते हैं जो मक्के से पैदल हज को जाये यहाँ तक कि मक्का वापस आये उसके लिए हर क़दम पर सात सौ नेकियाँ हरम शरीफ़ की नेकियों के मिस्ल लिखी जायेंगी, कहा गया हरम की नेकियों की क्या मिक़दार है फ़रमाया हर नेकी लाख नेकी है तो इस हिसाब से हर क़दम पर सात करोड़ नेकियाँ हुईं ।
(इब्ने ख़ुज़ैमा व हाकिम इब्ने अब्बासک से रिवायत)
  • रसूलुल्लाहگ ने फ़रमाया जो हज के लिये निकला और मर गया तो क़यामत तक उसके लिये हज करने वाले का सवाब लिखा जायेगा और जो उमरा के लिये निकला और मर गया उसके लिये क़यामत तक उमरा करने वाले का सवाब लिखा जायेगा और जो जिहाद में गया और मर गया उसके लिए क़यामत तक ग़ाज़ी का सवाब लिखा जायेगा।
(अबू याला अबू हुरैराک से रिवायत)

हज का हुक्म

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक मे फ़रमाता है-

وَلِلّٰہِ عَلَی النَّاسِ حِجُّ الْبَیۡتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیۡہِ سَبِیۡلًؕ
(और अल्लाह का हक़ है लोगों पर उसके घर का हज करना जो उसके रास्ते की ताक़त रखता हो)
 (सूरह आले इमरान, आयत-96)
और फ़रमाया-
وَاَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَۃَ لِلّٰہِؕ
(और पूरा करो हज और उमरा अल्लाह के लिये)
(सूरह अलबक़रा, आयत-196)
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है
طَلَبُ العِلْمِ فَرِیْضَۃٌ عَلٰی کُلِّ مُسْلِمٍ
इल्म का हासिल करना हर मुसलमान  मर्द (और- औरत) पर फ़र्ज़ है।
(सुनन इबने माजा)
ओलमा के नज़दीक इस हदीस-ए-पाक के मुताबिक़ जो इल्म सीखना फ़र्ज़ हैं वो इस तरह हैं।
  • सबसे पहले और सबसे ज़रूरी फ़र्ज़ ये है कि उन बुनियादी अक़ाइद का इल्म हासिल करे । जिनसे आदमी सही अक़ीदा रखने वाला मुसलमान बनता है और जिनके इन्कार या मुख़ालफ़त से काफ़िर या गुमराह हो जाता है।
  • इस के बाद तहारत यानी पाकी और सफ़ाई का इल्म हासिल करे।
  • नमाज़ के मसाइल यानी उस के फ़र्ज़, शर्तें और नमाज़ तोड़ने वाली चीज़ें सीखे ताकि नमाज़ सही तरह अदा कर सके।
  • रमज़ानुल मुबारक के रोज़ों के मसाइल  ।
  • ज़कात के मसाइल ताकि मालिक-ए-निसाब होने पर ज़कात सही तरह अदा कर सके।
  • साहिब-ए-इस्तिताअत हो तो हज के मसाइल।
  • निकाह करना चाहे तो उस के ज़रूरी मसाइल।
  • व्यापारी (Businessman) के लिये ख़रीदने और बेचने के मसाइल,
  • किसान (और ज़मींदार) के लिये खेती बाड़ी के मसाइल।
  • मुलाज़िम बनने और मुलाज़िम रखने वाले पर मुलाज़मत से मुताल्लिक़ मसाइल।
  • हर समझदार और बालिग़ मुसलमान मर्दो औरत पर उस की मौजूदा हालत के मुताबिक मसले सीखना फ़र्ज़े ऐन है।
  • हलाल और हराम के मसाइल भी सीखना फ़र्ज़ है।

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