Tuesday 6 December 2016

क़ुरआनी दुआएं


رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ


परवरदिगार हमें दुनिया में भी नेकी अता फ़रनमा और आख़ेरत में भी, और हमें जहन्नम के अज़ाब से महफ़ूज़ फ़रमा। 

बक़रह 201
قَالُواْ رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

पालने वाले हमें बे पनाह सब्र अता फ़रमा,हमारे क़दमों को सिबात दे और हमें काफ़िरों के मुक़ाबिले में नुसरत अता फ़रमा।

बक़रह 250

رَبَّنَا لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا 

पालने वाले हम जो भूल जायें या हमसे ग़लती हो जाये उसका मुवाख़ेज़ा न करना। ( यानी उसके बारे में जवाब तलब न करना।)

बक़रह 286v
رَبَّنَا وَلاَ تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا 

पालने वाले हमारे ऊपर वैसा बोझ न डालना, जैसा पिछली उम्मतों पर डाला गया। 

बक़रह 286



رَبَّنَا وَلاَ تُحَمِّلْنَا مَا لاَ طَاقَةَ لَنَا بِهِ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَآ أَنتَ مَوْلاَنَا فَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

पालने वाले हम पर वह बार न डालना जिसकी हम में ताक़त न हो, हमें माफ़ कर देना, हमें बख़्श देना, हम पर रहम करना, तू हमारा मौला और मालिक है, अब काफ़िरों के मुक़ाबिले में हमारी मदद फ़रमा। 

बक़रह 286

رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَدُنْكَ رَحْمَةً إِنّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ

पालने वाले हिदायत के बाद हमारे दिलों को न फेरना, हमें अपने पास से रहमत अता फ़रमा, तू तो बेहतरीन अता करने वाला है। 

आलि इमरान 8

رَبَّنَا إِنَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ

पालने वाले हम ईमान ले आये हैं हमारे गुनाहों को माफ़ करदे और हमें जहन्नम से बचा ले। 

आलि इमरान 16

ربَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِي أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

पालने वाले हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे हमारे कामों में ज़्यादतियों को माफ़ फ़रमा, हमारे क़दमों को सिबात अता फ़रमा और काफ़िरों के मुक़ाबिले में हमारी मदद फ़रमा। 

आलि इमरान 147

رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الأبْرَارِ

पालने वाले हमारे गुनाहों को माफ़ फ़रमा, हम से हमारी बुराईयों को दूर कर दे और हमें नेक बंदों के साथ महशूर फ़रमा।

आलि इमरान 193

رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ

पालने वाले हम ईमान ले आये हैं लिहाज़ा हमारा नाम भी तसदीक़ करने वालों में लिख ले।

मायदा 83

رَبَّنَا لاَ تَجْعَلْنَا مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ

पालने वाले हमें ज़ालिमों के साथ क़रार न देना।

आराफ़ 47

رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَتَوَفَّنَا مُسْلِمِينَ

पालने वाले हमें बहुत ज़्यादा सब्र अता फ़रमा और हमें मुसलमान दुनिया से उठा। 

आराफ़ 126

رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ

पालने वाले मेरी दुआ को क़बूल फ़रमा।

इब्राहीम 40

رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ

पालने वाले मुझे, मेरे वालदैन को और तमाम मोमेनीन को उस दिन बख़्श देना जिस दिन हिसाब क़ायम होगा। 

इब्राहीम 41

رَبَّنَا آتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا

पालने वाले हमें अपनी रहमत अता फ़रमा और हमारे काम में कामयाबी का समान फ़राहम कर दे। 

कहफ़ 10

رَبَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ

पालने वाले हम ईमान ले आये हैं, अब हमें माफ़ फ़रमा और हमारे ऊपर रहम कर और तू तो रहम करने वालों में सबसे बेहतर है। 

मोमिनून 109

رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا

पालने वाले हमें हमारी अज़वाज व औलाद की तरफ़ से ख़ुनकी –ए- चश्म अता फ़रमा और हमें साहिबाने तक़वा का पेशवा बना दे। 

फ़ुरक़ान 74
ज़कात का नकद फायदा
ज़कात अदा करने से बलायें और मुसीबतें टाल दी जाती हैं। हदीस में है सदका झटपट दिया करो। इसलिए कि मुसीब सदके से आगे नहीं बढ़ती। एक दूसरी हदीस में है बेशक सदका अल्लाह तआला के गुस्से को ठंडा कर देता है। बुरी मौत से बचाता है यानी सख्त बीमारी और संगीन हालत से बचाने में मुफीद है। एक हदीस में ज़कात अदा करके अपने अमवाल की मजबूत हिफाज़त का इन्तिज़ाम करो और सदके के जरिए अपने मरीजों का इलाज करो और दुआबे गिरयादारी के जरिए आसमानों के तूफानों का मुकाबला करो। 
ज़कात देने से मिलती है अल्लाह की रज़ा
ज़कात देने से माल पाक होता है और अल्लाह तआला की रज़ा हासिल होती है। जबकि ज़कात न देने से माल नापाक रहता है और अल्लाह तआला नाराज होता है। कुरआन और हदीस में ज़कात के बड़े फजाइल बयान किए गये हैं। 
सदकतुल फितर के लिए साल गुजरना जरूरी नहीं
जकात हर साहिब ए निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तौले चांदी या साढ़े सात तौले सोना हो या फिर इनकी कीमत जितना नकद रूपया हो। जकात के लिए साल गुजरना शर्त है, यानी किसी शख्स के पास छह-सात माह से इतना पैसा है कि जिससे वो इतना जेवर खरीद सकता है तो उस पर जकात फर्ज नहीं हुई। हां उस पर सदकतुल फितर वाजिब है। क्योंकि सदकतुल फितर के लिए साल गुजरने शर्त नहीं है। 
ज़कात अदा ना करने पर वअीद
जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उन को अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते सो आप उनको एक बड़े दर्दनाक अज़ाब की खबर सुनी दीजिए। अव्वल उनको दोजख की आग में तपाया जाएगा। फिर उस माल से उन लोगों की पेशानियां और उन की करवट और उन की पुश्तों को दाग दिया जाएगा। और उन से कहा जाएगा यह वो माल है जिस को तुम ने अपने वास्ते जमा करके रखा था। सो अब अपने जमा करने का मज़ा चखो (कुरआन करीम-सूर ए तोबा)।
हदीस: हजरत इब्ने मसऊद फरमाते हैं कि रसूल अकरम सल. ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स अपने माल की ज़कात अदा नहीं करता क्यामत के दिन उस का माल गंजे सांप की शक्ल में उसकी गर्दन में डाल दिया जाएगा और वो कहेगा- मैं तेरा माल हूं।

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