Friday 16 December 2016

सरकारे दो आलम گ की पसन्दीदा ग़िज़ा
आप گ सब्ज़ी खाना पसन्द फ़रमाते ख़ास तौर पर लौकी बहुत शौक़ से खाते, बकरी का गोश्त ख़ास तौर पर उसका दाहिना दस्त (हाथ) आपको पसन्द था। सिरका, सुरीद, खजूर, जौ आपकी ग़िज़ा में था। शहद आपको बहुत पसन्द था। कलौंजी के बारे में आपका फ़रमान है कि इसमें मौत के अलावा हर बीमारी का इलाज है।
लहसुन – प्याज़ खाने का हुक्म
कच्चा लहसुन प्याज़ खाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है और मुँह में बू पैदा करता है पका हुआ खाने में हरज नहीं।
खाने के बाद प्लेट में खाना छोड़ना
ज़रा सोचिए एक दावत में एक हज़ार लोग आए और हर एक ने एक एक निवाला भी छोड़ा तो इस एक हज़ार निवालों से कितने ग़रीबों का पेट भर जाता और अगर पूरा मुल्क या पूरी दुनिया इस पर अमल करे तो शायद लोखों लोगों का पेट भर सकता है। क़ायदा यह होना चाहिए कि प्लेट में उतना ही निकाले जितना खाना चाहता है ज़रूरत हो तो दोबारा निकाल ले जूठा न छोड़ें क्योंकि आजकल लोग दूसरे का जूठा नहीं खाते जब कि मुसलमान का जूठा पाक है बल्कि माँ बाप का या किसी बुज़ुर्ग का झूठा तो बरकत वाला है। किसी को कोई ऐसी बीमारी है जिससे कराहियत हो तो उसका जूठा न खायें।
खाने में ऐब लगाना या कमी निकालना
खाने में ऐब लगाना नहीं चाहिए अच्छा लगे तो खायें और अच्छा न लगे तो न खायें। खाने में ऐब लगाना या कमी निकालना सुन्नत के ख़िलाफ़ है।
ख़ूब पेट भर कर खाना
पेट का एक तिहाई खाने के लिए एक तिहाई पानी के लिए एक तिहाई हवा के लिए रखें। जब ख़ूब भूख लगे तब खायें और थोड़ी सी भूख बाक़ी रहे तो खाना छोड़ दें यह सेहत के लिए बहुत अच्छा है लेकिन अगर उसे यह अन्देशा है कि शाम का खाना देर में मिलेगा या कल का रोज़ा अच्छी तरह रख लेगा तो पेट भर का खा लेने में हरज नहीं, अगर मेहमान के साथ थोड़ा ज़्यादा खा लिया तो हरज नहीं या इबादत के लिए ताक़त हासिल करने के लिए भी जाइज़ है। लेकिन इतना भी न खायें कि पेट ख़राब हो जाए। मुख़्तसर यह कि नियत सही हो, तरह तरह के मज़े लेने से बचे। कभी कभी भूखा भी रहे यानी फ़ाक़ा कर लिया करे इसके बड़े फ़ज़ाइल हैं कि जब भूखा रहता है तो दुनिया की ख़्वाहिशात उसे नहीं सतातीं और नेकियों की तरफ़ रग़बत होती है ग़रीब की भूख का एहसास होता है जहन्नम में हमेशा भूखा रहेगा यह सोच कर दिल आख़िरत की तरफ़ राग़िब होता है।
इकट्ठे हो कर खाना
इकट्ठे हो कर खाना खाने में बरकत होती है।
खाना आहिस्ता-आहिस्ता खाना
आहिस्ता चबा चबा कर खाना बेहतर है सेहत के उसूल में से है और अगर मेहमान के साथ खा रहा और वह आहिस्ता खा रहा है तो अपने मुसलमान भाई का ख़्याल रखते हुए आहिस्ता खाये, ऐसा न हो कि शर्म की वजह से वह भूखा ही उठ जाए।
गिरी हुई चीज़ को उठा कर खाना
दस्तरख़्वान पर गिरी हुई चीज़ को उठा कर खाने वाले की मग़फ़िरत हो जाती है हाँ उसे साफ़ करके खाना चाहिए।
खाने को फूँक कर खाना
कुछ लोग खाने में फूँक कर खाते हैं यह ग़लत है। खाने को थोड़ा ठंडा करके खाना चाहिए इसमें बरकत है लेकिन खाने या पीने की चीज़ों को फूँक कर खाना नहीं चाहिए। साईंस के ऐतबार से भी यह ग़लत है कि डाक्टर इसे मना करते हैं और जिगर व मेदे के लिए बहुत गर्म खाना नुक़सानदेह है।
छुरी काँटे से खाना
छुरी काँटे से खाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है हाँ अगर शीरमाल बिस्कुट वगै़रह काट कर पेश करना है तो जाइज़ है।
खाना खाते वक़्त कोई आ जाए तो
खाने के लिए झूठमूठ पूछना मना है और खाते वक़्त सलाम करना भी मना है। खाना खाने के लिए सच्चे दिल से पूछना अच्छा है और जिससे पूछा गया तो उसका यह कहना कि ‘बिस्मिल्लाह करो’ मना है लेकिन उसे यह कहना चाहिये कि “बाराकल्लाह” यानी अल्लाह बरकत दे। इसी तरह कुछ लोगों से खाने के लिए पूछा जाता है तो कह देते हैं “भूख नहीं” या “खा कर आया हूँ” अगर झूठ कहता है तो ऐसा करना बुरा है।
खाने में मीठा और नमकीन दोनों तरह के खाने हों तो
अगर मीठा और नमकीन दोनों हैं तो नमकीन से शुरू करे और मीठा बीच में खायें फिर नमकीन बाद में खायें, इसमें सत्तर क़िस्म की बीमारियों से शिफ़ा है।
खाना खाते में चुप रहना
खाना खाते में चुप रहना मजूसियों का तरीक़ा है बीच बीच में जाइज़ बातें करते रहना चाहिए।
निवाला दस्तरख़्वान पर गिर जाये तो
कभी कभी निवाला दस्तरख़्वान पर गिर जाता है तो निवाला उठा कर खा लेना चाहिए। शैतान वसवसा डाले तो यह सोचे कि यह नेमत किसने दी है और अगर निवाला गन्दा होता पाक न होता तो अल्लाह पाक हमें उठाने का हुक्म क्यों देता हमें इस बात पर नज़र रखना चाहिए कि हमें अल्लाह के हुक्म मानने में हमेशा फ़ायादा होगा हमारी समझ में आए या न आए बहुत सी बातें हमारी समझ में नहीं आतीं फिर भी हम उन पर अमल करते हैं।
बरतन और उंगलियों को चाटने वालों को बहुत बुरी निगाहों से देखना
कुछ लोग बरतन और उंगलियों को चाटने को बहुत बुरी निगाहों से देखते हैं यह बहुत बुरी बात है यह सुन्नत है और किसी सुनन्त को बुरा जानना तो बहुत दूर की बात है बल्कि उसका हल्का जानना भी ईमान की कमज़ोरी का सबब है। खाने वाले भी इस बात का ख़्याल रखें के जहाँ यह अन्देशा हो कि ऐसे लोग मौजूद हैं जो इससे बुरी नज़र से देखेंगें तो वहाँ आख़िरी निवाले से प्लेट साफ़ कर ले ताकि लोग सुन्नत की तौहीन से बचें। बरतन अपने चाटने वालों के लिए दुआ करता है कि ऐ अल्लाह जिस तरह इसने मुझे शैतान से बचाया है तू इसे जहन्नम से बचा ले। साईंस ने भी साबित कर दिया है कि विटामिन भारी होने की वजह से बरतन में नीचे बैठे होते है लिहाज़ा बरतन चाटने के फ़ायदे साईंस ने भी बताये।
अगर बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जायें
दस्तरख़्वान नहीं उठाया गया है तो एक निवाला बिस्मिल्लाह पढ़ कर खा लें और दस्तरख़्वान उठा लिया गया है तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर उंगलियाँ चाट लें और पूरा पढ़ें (بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ)
खाने के आदाब
  • खाने से पहले और बाद में गट्टों तक हाथ धोना चाहिए।
  • बिस्मिल्लाह (بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ) से खाना शुरू करें, अगर बिस्मिल्लाह न पढ़ी जाए तो शैतान शरीक हो जाता है।
  • खाने से पहले ये दुआ पढ़ ली जाये तो बीमारियों से बचा रहेगा और अगर खाने में ज़हर भी होगा तो इंशा अल्लाह असर नहीं करेगा-
بِسْمِ اللّٰہِ الَّذِیْ لَایَضُرُّ مَعَ اسْمِہِ شَیْءٌ فِی الْاَرْضِ وَلَا فِی السَّمَآءِ یَاحَیُّ يَاقَیُّوْمُ
(अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जिसके नाम की बरकत से ज़मीन और आसमान की कोई चीज़ नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। ऐ हमेशा से ज़िंदा व क़ायम रहने वाले।)
  • बैठ कर, जूता उतार कर खाना खायें और बायाँ पैर बिछा दें और दाहिना पैर खड़ा रखें या सुरीन (कूल्हों) पर बैठें या दोनों पैर खड़े रखें।
  • खड़े होकर न खायें।
  • दस्तरख़्वान बिछा लेना चाहिए।
  • दाहिने हाथ से तीन उंगलियों से खाना चाहिए बायें से न खायें क्योंकि शैतान बायें से खाता है।
  • तकिया लगा कर या नंगे सर खाना आदाब के ख़िलाफ़ है, बायें हाथ पर टेक लगा कर खाना भी मकरूह है।
  • खाना एक ही तरह का है तो अपनी तरफ़ से खाए इधर उधर हाथ न मारें।
  • खाने के बाद बरतन और उंगलियों को चाट लेना सुन्नत है।
  • खाना खाने के बाद अल्लाह का शुक्र करे और दुआ करें-
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِیْ اَطْعَمَنَا وَسَقَانَا وَجَعَلَنَا مُسْلِمِیْنَ
(अल्लाह तआला का शुक्र है जिसने हमें खिलाया पिलाया और हमें मुसलमान बनाया)
  • खाने के बाद हाथ धोयें और गीले हाथ को मुँह सिर व कलाइयों तक हाथ का मसा कर लें यह खाने के बाद का वुज़ू है।
  • जब तुम में से कोई खाना खाये तो सीधे हाथ से खाए और जब पिए तो सीधे हाथ से पिये कि शैतान उल्टे हाथ से खाता पीता है ।
(सही मुस्लिम)
  • हर शख़्स बर्तन के उसी जानिब से खाए जो उस के सामने हो।
 (सही अलबुख़ारी हज़रत अनस बिन मालिक रज़ी अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत)
  • इकठ्ठे होकर खाना खाओ और बिस्मिल्लाह पढ़ो तुम्हारे लिये इसमें बरकत होगी
 (सुनन अबू दाऊद, इमाम अहमद, अबू दाऊद, इब्ने माजा, हाकिम और हशी बिन हरब  रज़ी अल्लाह ताला अन्हु से रिवायत)
  • खाने को ठंडा कर लिया करो कि गरम खाने में बरकत नहीं।
(अल मुसतदरक लिल हाकिम, हाकिम जाबिर रज़ी अल्लाह ताला अन्हा से रिवायत)
  • जब दस्तरख़्वान चुना जाये तो कोई शख़्स  दस्तरख़्वान से न उठे जब तक दस्तरख़्वान न उठा लिया जाये और खाने से हाथ न खींचे अगर्चे खाना खा चुका हो जब तक सब लोग फ़ारिग़ न हो जायें और अगर हाथ खींचना ही चाहता है तो मआज़रत पेश करे क्योंकि अगर बग़ैर मआज़रत किये हाथ रोक लेगा तो उसके साथ जो दूसरा शख़्स खा रहा है शर्मिन्दा होगा और वह भी हाथ रोक लेगा और शायद उसके खाने की हाजत अभी बाक़ी हो।    
  • खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो ,इस में तुम्हारे लिए राहत है।
 (मिश्कात अल मसाबिह, अनस बिन मालिक ؓ से रिवायत)
  • जिस खाने पर बिस्मिल्लाह न पढ़ी जाये इस खाने को शैतान अपने लिए हलाल समझता है ।
(सही मुस्लिम, हज़रत हुज़ैफ़ा چ से  रिवायत )
  • जब तुम में से कोई खाना खाए तो उसे चाहिए कि पहले बिस्मिल्लाह पढ़े ।अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाये तो यह कहेबिस्मिल्लाहि अव्वलुहू  वा आख़िरुहु
(सुनन अबू दाऊद, हज़रत आईशा सिद्दीक़ा چ से मर्वी )
खाना खाने के बारे में कुछ अहादीस –
  • जो यह पसंद करे कि अल्लाह ताला उस के घर में बरकत ज़्यादा करे तो उसे चाहिए कि जब खाना हाज़िर किया  जाये तो वुज़ू करे और जब उठाया जाये तब भी वुज़ू करे। उलमा के मुताबिक इस हदीस शरीफ़ में वुज़ू से मुराद हाथ और मुँह की सफ़ाई करना है यानि हाथ धोना और कुल्ली करना।
(सुनन इबने माजा, हज़रत अनस बिन मालिक ؓ से रिवायत)

खाने की सुन्नतें और आदाब

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
खाना अल्लाह ताला की बहुत लज़ीज़ नेअमत है । अगर खाना अहमद-ए- मुज्तबा گ की सुन्नतों के मुताबिक़ खाया जाये तो हमें पेट भरने के साथ साथ सवाब भी हासिल होगा । इस लिए हमें चाहिए कि सुन्नत के मुताबिक़ खाना खाने की आदत डालें ।

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