Wednesday 7 December 2016

ख़तना
ख़तना सुन्नत है और इस्लामी पहचान है इससे मुस्लिम व ग़ैरमुस्लिम में फर्क़ मालूम होता है इसलिए इसे मुसलमानी भी कहते हैं।
ख़तना का मतलब यह है कि मर्द के आला-ए-तनासुल (लिंग) पर आगे की तरफ़ जो फ़ालतू खाल होती है उसे काट दिया जाता है। हमारे हुज़ूरگ ख़तना किये हुए पैदा हुए। ख़तना बारह साल की उम्र तक कराई जा सकती है। यहूदी अपने बच्चों की पैदा होने के सातवें दिन ख़तना करा देते थे लिहाज़ा उनकी मुख़ालफ़त की वजह से थोड़ा इंतज़ार करना बेहतर है कि आगे के दाँत निकल आयें। बाज़ उलमा ने पैदाइश के सातवें दिन कराना भी जाइज़ बताया है। अगर बच्चा ख़तना हुए पैदा हुआ तो ख़तना की ज़रूरत नहीं। कोई बूढ़ा आदमी ईमान लाया और उसमें ख़तना कराने की ताक़त नहीं तो ख़तना की ज़रूरत नहीं।
‘‘ऐ अबू हुरैरा अपने नाख़ून तराशो, क्योंकि बढ़े हुऐ नाख़ूनो पर शैतान बैठता है’’
(जामा-ए-ख़तीब)
नाख़ून काटने को मसनून तरीक़ा
हाथों के नाख़ून काटने के लिये दाहिने हाथ की शहादत की उँगली (Index Finger) से शुरुआत करनी चाहिये और तरतीब से चुँगली तक सब उँगलियों के नाख़ून काटने चाहिये। फिर बाँये हाथ की चुँगली से शुरु करके तरतीब वार अँगूठे तक सब उँगलियों के नाख़ून काटें और सब से आखि़र में दाहिने हाथ के अँगूठे के नाख़ून काटने चाहिये।
पैर के नाख़ून काटने के लिये वही तरतीब होनी चाहिये जो वुज़ू में उँगलियों की घाइयाँ धोने में रखी जाती है यानि शुरुआत दाहिने पैर की चुँगली से करें और अँगूठे पर ख़त्म करें। बायें पैर में शुरुआत अँगूठे से करें और चुँगली पर ख़त्म करें।
बग़लों और नाफ़ के नीचे के बाल:-
बग़लों और नाफ़ के नीचे के बाल साफ़ करने के लिये बेहतर यह है कि हर आठवें दिन यानि जुम्मे को जब ग़ुस्ल करें तो इन बालों को भी उस्तरे (Razor) से साफ़ कर लें। औरतों के लिये बेहतर है कि किसी साबुन या क्रीम से यह बाल साफ़ करें। इन बालों को साफ़ करने की मुद्दत किसी भी हाल में चालीस (40) दिन ये ज़्यादा नहीं होनी चाहिये।
नाख़ून काटने के लिये भी यही बेहतर है कि हर आठवें दिन दोनों हाथों और पैरों की उँगलियों के नाख़ून काट लेने चाहियें ताकि इसमें मैल या कोई ऐसी चीज़ न फंस जाये जो वुज़ू या ग़ुस्ल करने मे रुकावट बने। मैल अगर वुज़ू/ग़ुस्ल के लिये रुकावट न भी हो लेकिन सेहत के लिये तो ख़तरनाक होता ही है, इसी वजह से आपگ नाख़ून काटने की बहुत ताकीद फ़रमाते आपگ का फ़रमाने आलीशान है।
मूँछोे के बाल:-
मूँछोे के बालों के लिये हज़रत मुहम्मदگ का हुक्म है कि मूँछे कतरवाओ और दाढि़याँ बढ़ाओ और मूँछों को मूँडने का अहादीस में कोई ज़िक्र नहीं मिलता लेकिन मूँछों को कतरवाने में ज़्यादती करनी चाहिये, मूँछों के कतरवाने मे होंठों के ऊपर का हिस्सा लिया जाता है और मूँछों के दोनों तरफ़ के बाल बढ़ाने में कोई हर्ज नहीं।
हज़रत अबू हुरैराؓसे रिवायत है कि नबी-ए-करीमگ ने फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों को बख़्श दे, सिहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, फिर आप گ ने फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों की बख़्शिश फ़रमा, सिहाबा ने फिर अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, आप گ ने फिर फ़रमाया इलाही सिर मुँडाने वालों की बख़्शिश फ़रमा, फिर अर्ज़ किया गया या रसूलुल्लाह बाल कतरने वालों को भी, आप گ ने फ़रमाया और बाल कतरने वालों की भी (मग़फि़रत फ़रमा दे)।
मौअल्लिफ़ (Author) के दिल में यह सवाल आता है कि वुज़ू मेें सिर का मसह फ़र्ज़ है हालांकि बालों में मसह करने से सही मसह हो जाता है लेकिन मसह की हक़ीक़त नहीं पाई जाती मगर सिर मुँडाने में।
इसी लिये हज़रत अली करमल्लाह वजहु से मरवी है कि आप रोज़ाना सिर मुँडाया करते थे’’
सिर के बाल मुँडवाने की फ़ज़ीलत
हज़रत मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामी रहमतुल्लाह अलैह अपनी मशहूर किताब ‘सबआ सनाबिल’ में बालों को मुँडवाने (कटवाकर साफ़ कराने) की फ़जीलत बयान करते हुए लिखते हैं कि-
‘‘खु़लाफ़ाए राशिदीन और दूसरे तमाम सिहाबा सिर मुँडाते रहे हैं ऐसे ही तमाम अइम्मा। लिहाज़ा इमाम आज़म अबू हनीफ़ाؒ, इमाम शाफ़ईؒ, इमाम मालिकؒ और इमाम अहमद बिन हम्बल ؒ और तमाम तबक़ात के मशाइख़ के सिर मुँडे हुए थे तो उनकी सीरत की पैरवी करना ही बेहतर और अच्छा है। हदीस शरीफ़़ मे है कि सिर मुँडाने वाले शख़्स को मौत की कड़वाहट, क़ब्र का अज़ाब और क़यामत का डर नहीं होगा। ऐसे शख़्स को अंबिया -ए-किरामےके साथ क़ब्र से उठाया जायेगा और रसूलों के पास जगह दी जायेगी और उसके सिर से जितने बाल जुदा होंगे तो हर बाल के बदले एक फ़रिश्ता पैदा किया जायेगा जो क़यामत तक उस शख़्स के लिये असतग़फ़ार करता रहेगा।
सिर के बालों के बारे में शरई हुक्म यह है कि बाल रखना भी जाइज़ है और कटवाना भी। लेकिन बालों का कटवाना यानि मुँडवाना अफ़ज़ल है और अगर बाल रखे जाएं तो शरीफ़़ों वाले। कोई भी मर्द औरतों की तरह बाल न रखे और ऐसे ही न कोई औरत मर्दों की तरह बाल कटवाये।
फ़ालतू चीज़े जैसे बढ़े हुए नाख़ून और बाल वग़ैरा :- 
बदन में बढ़ी हुई फ़ालतू चीज़ें जिन की वजह से नापाकी या जनाबत दूर नहीं हो पाती उनसे निजात हासिल करने के लिये यह काम ज़रूरी हैं।
(1) सिर के बाल कटवाना/कतरवाना।
(2) मूँछों के बाल कतरवाना।
(3) बग़लों के बाल साफ़ करना ।
(4) नाफ़ के नीचे के बाल साफ़ करना।
(5) नाख़ून काटना।
(6) ख़तना कराना।
(7) दाढ़ी के बाल एक मुट्ठी से ज़्यादा को कतरवाना।
मैल:- 
सिर और दाढ़ी के बालों में जमा होने वाले मैल और जुओं का साफ़ करना मुस्ताहिब है। इनकी सफ़ाई के लिये बालों को धोने, तेल लगाने और कंघा करने का हुक्म है। हज़रत मुहम्मद ﷺ अपने बालों में कभी कभी तेल डालते और कंघा करते।
आपका फ़रमान है कि-
जिसके बाल हों उसे चाहिये कि उनका इकराम करे (यानि देखभाल करे)
(अबू दाऊद)
इसी तरह कानों, दाँतों और नाख़ूनों वग़ैरा में जो मैल जम जाता है उसे साफ़ करना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि जमे हुए मैल से सिर्फ़ सही तरह से पाकी हासिल करने में ही रुकावट नहीं आती बल्कि तरह-तरह की बीमारियाँ होने का भी ख़तरा रहता है।
रतूबतें :-
हमारी नाक और आँखों से ऐसी रतूबतें निकलती हैं जो सूख कर नथनों में या आँखों के कोए में जम जाती हैं जिस की वजह से वुज़ू और ग़ुस्ल सही नहीं होते।

जिस्म की फ़ालतू चीज़ें से पाकी

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
इसमें हम उन चीज़ों का ज़िक्र करेंगे जो नापाक तो नहीं होती मगर सही तरह से पाकी हासिल करने में रुकावट पैदा करती हैं। कभी-कभी तो इन चीज़ों की वजह से वुज़ू और ग़ुस्ल भी सही नहीं हो पाता जिससे इबादतें बर्बाद हो सकती हैं। लिहाज़ा इस पर ध्यान देना ज़रूरी है। यह तीन (3) तरह की होती हैं।
क़ुरआन पाक में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया-
“तो शैतान ने इन्हें इस दरख़्त के ज़रिये फुसलाया और जहाँ वो रहते थे वहाँ से उन्हें अलग कर दिया और हमने फ़रमाया तुम सब नीचे उतरो।”
(सूरह अलबक़राह, आयात- 36 से 37)
अभी फल खाना ही शुरू ही किया था कि जन्नती लिबास उतर गया और वह दोनों, पत्तों से अपना सतर  ढाँपने और शर्मिन्दा होकर इधर उधर भागने लगे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया, ऐ आदम! क्या मुझ से भागते हो अर्ज़ किया- “’नहीं” … “ऐ मेरे रब! बल्कि तुझ से हया करता हूँ। अल्लाह का अताब नाज़िल हुआ कि ऐ आदम! क्या मैंने तुमसे उस दरख़्त के पास जाने से मना नहीं किया था? क्या मैने तुम्हें ख़बरदार नहीं किया था कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है? हज़रत आदम ے फ़ौरन अपनी ग़लती का अहसास करते हुए सजदे में गिर गए और नदामत से अर्ज़ करने लगे-
“ऐ परवरदिगार हम ने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और अगर आप ने अपने फ़ज़्ल व करम से हमे माफ़ न फ़रमाया और हम पर रहम न फ़रमाया तो हम ख़सारा(नुक़सान) उठाने वाले हो जायेंगे।”
(सूरह अलऐराफ़,आयत -23)
अल्लाह तआला जो सब के दिलों के हाल जानता है वह हज़रत आदम ے के दिल की कैफ़ियत को अच्छी तरह जानता था। उसने आप को माफ़ फरमा दिया। लेकिन अल्लाह को आइन्दा के लिए दुनिया को आबाद करना था और नस्ले इन्सानी को बढ़ाना था इसलिए अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے और हव्वा ے को हुक्म दिया कि तुम ज़मीन पर उतर जाओ और वहीं पर रहो और यह बात हमेशा याद रखो कि- “शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है।”
इस के बाद अल्लाह तआला ने फरमाया-
“तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो और जहाँ से चाहो ख़ूब दिल खोल कर खाओ लेकिन इस दरख़्त के पास मत जाना कि हद से बढ़ने वालों में हो जाओगे”
(सूरह अलबक़राह, आयात- 34 से 35)
अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے और हव्वाے को जन्नत में ठिकाना अता फ़रमाया और उन्हें हर तरह की आज़ादी अता फ़रमाई सिवाय एक दरख़्त के पास जाने के। उन्होंने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उस दरख़्त के पास जाने से ख़ुद को रोके रखा फिर इनके दिल में शैतान ने वसवसा डाला और आख़िर कार दोनों से वो खता हो गई जिस से अल्लाह तआला ने उन्हें मना फ़रमाया था। 
हज़रत हव्वा ے की पैदाइश 
जब फ़रिश्तों के सामने इब्लीस का घमण्ड ज़ाहिर हो गया और उस ने घमण्ड और सरकशी पर कमर बांध ली तो अल्लाह तआला ने उस पर लानत फ़रमाई आसमान और ज़मीन की हुकूमत उससे छीन ली और जन्नत की पहरेदारी से भी हटा दिया और फ़रमाया- “तू मरदूद है जन्नत से निकल जा अब क़यामत तक के लिए तुझ पर लानत है।”
इस के बाद अल्लाह ने हज़रत आदमے  को जन्नत में रहने का हुक्म फ़रमाया और इन पर ऊँघ डाल दी यानि उन पर नींद तारी हो गई। फिर इन की बायीं पसली में से एक पसली लेकर हव्वाے को पैदा फ़रमाया। आदमے  जब सोकर उठे तो अपने सिरहाने एक औरत  को खड़ा देखा। उन्होंने पूछा- “तुम कौन हो”…. कहा- “एक औरत” …….  फिर पूछा – “किस लिए पैदा की गई हो” ……वो कहने लगीं- “ताकि तुम मुझ से सकून हासिल कर सको।”
जब फ़रिश्तों को ख़बर हुई तो वो इस औरत को देखने आये और कहा ऐ आदम! इसका नाम क्या है ?…. आदमے   ने जवाब दिया- “हव्वा” ….. इन्होंने फिर पूछा- “ये नाम क्यों रखा?….. कहा- “’इस लिए की यह  “हइ”  यानि ज़िंदा इन्सान से पैदा की गई।” 
अल्लाह तआला ने आदम को तमाम नाम सिखाकर फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया-
अगर तुम सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तो ने कहा अल्लाह तेरी ज़ात पाक है हमें तो सिर्फ इतना ही इल्म है जितना तूने हमें सिखाया पूरे इल्म व हिकमत वाला तू ही है अल्लाह ने आदमے  से फ़रमाया तुम इनके नाम बता दो जब इन्होने बता दिए।  तो फ़रमाया क्या मैं ने तुम्हे पहले नहीं कहा था कि ज़मीन आसमान का ग़ैब मैं ही जानता हूँ और मेरे इल्म में है जो तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। 
(सूरह अलबक़राह, आयात-31 से 33)
यहाँ इस बात का बयान हो रहा है कि अल्लाह तआला ने एक ख़ास इल्म के ज़रिये आदम ے    को फ़रिश्तों पर फ़ज़ीलत दी। यह वाक़िया फ़रिश्तों के सजदा करने के बाद का है। अल्लाह तआला ने फिर इन चीज़ों को फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया अगर तुम अपने क़ौल में सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तों ने यह सुनते ही अल्लाह तआला की बड़ाई, पाकीज़गी और अपने इल्म की कमी बयान की और कहा की हमें तो ऐ खुदावंद! इतना ही इल्म है जितना तूने हमें दिया। तमाम चीज़ो को जानने वाला तो परवरदिगार तू ही है। 
फिर अल्लाह तआला आदमے  की तरफ़ मुतवज्जा हुआ और फ़रमाया इन चीज़ो के नाम बता दो। आपने तमाम चीज़ो के नाम सही-सही बता दिये। इस तरह आदमے की बरतरी फ़रिश्तों पर ज़ाहिर हो गई तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया ”देखो में ने तुम से पहले ही कहा था कि हर खुले और छिपे का जानने वाला मैं ही हूँ। मतलब यह कि इब्लीस के दिल में छिपे तक्कुब्बर और ग़ुरूर को मैं ही जानता हूँ और फ़रिश्तों ने जान लिया कि आदमے  को इल्म व फ़ज़्ल के ज़रिये हम पर फ़ज़ीलत और बरतरी दी गई है।
क़ुरआन पाक में है कि-
” और अल्लाह तआला ने आदम ے को तमाम नाम सिखाये 
(सूरह अलबक़राह, आयत-31)
हज़रत इब्ने अब्बासک इसकी तफ़्सीर बयान करते हुए फरमाते हैं कि-
“अल्लाह ने आदम ے को हर चीज़ का नाम सिखाया यहाँ तक कि जिस्म से हवा ख़ारिज होने की आवाज़ का नाम तक सिखाया। तमाम छोटी और बड़ी चीज़ों के नाम ज़ाती और सिफ़ाती दोनों तरह के नाम सिखाये और तमाम कामों के नाम जैसे इब्ने अब्बास का क़ौल है की’ ‘ गूंज ”का नाम भी सिखाया।
इब्ने अब्बासک से रिवायत है कि
अल्लाह तआला ने सब से पहले आदम ے के जिस्म में रूह फूंकी तो वह सिर की तरफ़ से जिस्म में दाख़िल हुई और जिस्म के जिस हिस्से में पहुँचती वह गोश्त और ख़ून में तबदील हो जाता। जब रूह नाफ़ की जगह पहुँची तो आदमے ने अपने जिस्म को देखा तो वह बहुत ख़ूबसूरत मालूम हुआ आदम ے ने उठना चाहा तो उठ न सके अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि – “बेशक इंसान जल्द बाज़ है”। आगे फ़रमाया “आदम से मारे ख़ुशी के सब्र न हो सका”। फिर जब तमाम जिस्म में रूह फैल गई तो आदम ےको छींक आई और उन्होंने “अल्हम्दुलिल्लाह” (तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं) कहा यह अल्लाह की तरफ़ से इल्हाम की वजह से था अल्लाह ने फ़रमाया ऐ आदम! अल्लाह तुझ पर रहम करे।
फिर अल्लाह तआला ने आदम ے को इल्म अता किया और तमाम चीज़ों के नाम सिखाये।
इब्ने मसऊद ک, इब्ने अब्बासک और दूसरे सहाबा-ए-किराम की रिवायतों के मुताबिक़-
अल्लाह तआला ने जब आदम ے के पुतले में रूह फूंकना चाही तो फ़रिश्तों से फ़रमाया कि जब मैं इसमें रूह फूंक दूँ तो तुम उसके सामने सजदे में गिर जाना। फिर जब अल्लाह तआला ने आदम ے के जिस्म में रूह फूंकी तो वह सिर की तरफ़ से जिस्म में दाख़िल हुई जिसकी वजह से आदम ے को छींक आ गई जिस पर फ़रिश्तों ने कहा “अल्हम्दुलिल्लाह” (यानि तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं) कहें। अलहम्दुलिल्लाह कहने पर अल्लाह ने कहा “रहमका रब्बिका” (यानि तुम्हारा रब तुम पर रहम करे)। जब रूह आँखों में दाख़िल हुई तो आदम ے ने जन्नत के फल और मेवों को देखा। पेट में पहुँची तो खाने की ख़्वाहिश पैदा हुई और आदम  ے पैरों और टाँगों में रुह पहुँचने से पहले ही उन फलों और मेवों की तरफ़ कूद पड़े। क़ुरआन पाक में इसी जल्दबाज़ी की तरफ़ इशारा करते हुए अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि – “बेशक इंसान जल्द बाज़ है”।
जिस्म में रूह का दाखिल होना
अल्लाह तआला ने आदम ے का पुतला बनाया और इसको चालीस दिन तक इसी तरह रहने दिया। जब वह मिट्टी बिना पकाए मज़बूत हो गई और सूखकर ठीकरे की तरह आवाज़ करने लगी और जब यह पुतला पक्का हो गया तो अल्लाह तआला ने इसमें रूह फूंकने का इरादा फ़रमाया। पुतले को फ़रिश्तों के सामने पेश करके फ़रमाया कि जब मैं इसमें रूह फूंक दूँ तो तुम उसके सामने सजदे में गिर जाना।
जैसा कि क़ुरआन मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि-
”हम ने इंसान को सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे से बनाया। ”
(सूरह अलहजर, आयत-26)
गर्ज़ यह है कि अल्लाह ने आदम ے को अपने दस्ते क़ुदरत से बनाया। पहले मिट्टी को गारे में तब्दील किया फिर इसको मिला कर गुंधा गया। फिर आदम ے का पुतला बनाया गया और इसको चालीस दिन तक इसी तरह रहने दिया। फ़रिश्ते इसे देखने के लिए आते थे। इब्लीस भी अपने पैर से इस पुतले को ठोकर मारता और कहता मैं तुझ पर ग़ालिब आ गया तो तुझे हलाक कर दूंगा और अगर तू मेरा हाकिम बन गया तो मैं तेरी नाफ़रमानी करुँगा।
इब्ने अब्बासک से रिवायत है कि इंसान को तीन तरह की मिटटी से पैदा किया गया
  1. सलसाल,
  2. हमा,
  3. तीन लाज़िब
“तीन लाज़िब” से मुराद बेहतरीन और उम्दा मिट्टी है, “हमा” से मुराद कीचड़ और “सलसाल” से मुराद ऐसी मिट्टी जिसे कूट कर बारीक किया गया हो यानि ऐसी ख़ुश्क जो खनखनाती हो।
अल्लामा इब्ने कसीर लिखते है अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को मिट्टी लाने का हुक्म दिया। वह मिट्टी आसमानो की तरफ़ ले जाई गई और लेस दार मिट्टी “तीन लाज़िब” से आदम ے को बनाया गया जो इस से पहले बदबूदार मिट्टी “हमा” की शक्ल में थी और इस से पहले वो खुश्क मिट्टी “तुराब” थी।
आदम ے को किस मिट्टी से बनाया गया?
अबु मूसा अश्अरीک से रिवायत है कि रसूलल्लाह گ ने फ़रमाया कि-
“अल्लाह ने आदम ے को एक मुट्ठी मिट्टी से पैदा फ़रमाया जिसको तमाम ज़मीन से लिया गया इस तरह कई जगह की मिट्टी इस्तेमाल होने की वजह से  इन्सान अलग-अलग रंग (जैसे गोरे,काले या साँवले), अलग -अलग आदतों (जैसे ख़ुश अख़लाक़, बद मिजाज़) और अलग ख़सलतों (जैसे नेक व बद) के होते हैं।”
हज़रत इब्ने अब्बासک इस आयत की तफ़्सीर बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि-
“फ़रिश्तों ने ऐसा इस लिए कहा कि सबसे पहले ज़मीन पर रहने वाले जिन्नो ने फ़साद बरपा किया, ख़ून बहाया और अल्लाह कि नाफ़रमानी की लिहाज़ा अब जो ख़लीफ़ा बनेगा वो भी वैसा ही करेगा। अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि बेशक तुम नहीं जानते जो मैं जानता हूँ।”
यह बात याद रखनी चाहिए कि फ़रिश्तों का यह कहना एतराज़ के तौर पर नहीं था और न ही आदम ے और उनकी औलाद से हसद के तौर पर क्योंकि क़ुरआन मजीद के मुताबिक़ फ़रिश्ते वह बात नहीं कहते जिसको कहने या पूछने की उन्हें इजाज़त न हो।’
लिहाज़ा जब अल्लाह तआला ने आदम ے को बनाना चाहा तो फ़रमाया कि सारी ज़मीन से मिट्टी लाई जाए और आदम ے के लिये लेसदार चिपकने वाली मिट्टी आसमान की तरफ़ बुलन्द की गई पहले यह मिट्टी गारे की शक्ल में थी फिर इससे ख़मीर उठ गया । लिहाज़ा इस लेसदार और चिपकने वाली मिट्टी से अल्लाह तआला ने आदम  ے का पुतला अपने दस्त-ए-क़ुदरत से बनाया 
हज़रत आदम ے की पैदाइशः-
अल्लाह हर काम  पर क़ादिर है वो चाहे तो पलक झपकते ही तमाम जहानों को पैदा कर सकता है लेकिन इस दुनिया और इंसानों की तख़लीक़ उसने कई मरहलों (Stages) में की जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से फ़रमाया कि-
” बेशक मैं बनाने वाला हूँ ज़मीन में अपना नायब। उन्होंने कहा तू उसे नायब बनायेगा जो वहाँ फ़साद करें और ख़ून बहाएं और हम तेरी हम्द के साथ तेरी तस्बीह बयान करते हैं और तेरी पाकी बयान करते हैं। फ़रमाया बेशक मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”
(सूरते बक़र आयत 29 ,30 )
इब्ने मसऊद ک, इब्ने अब्बासک और दूसरे सहाबा-ए-किराम की रिवायतों के मुताबिक़-
“जब अल्लाह तआला अपनी अज़ीज़ तरीन मख़लूक़ को बनाने के बाद अपनी शान के मुताबिक़ अर्श पर रौनक़ अफ़रोज़ हुआ तो इब्लीस को  आसमाने दुनिया की बादशाहत पर मुक़र्रर किया। इब्लीस का ताल्लुक़ फ़रिश्तों के उस गिरोह से था जिन्हें जिन्न कहा जाता है। उनका नाम जिन्न इसलिए रखा गया कि वह जन्नत के पहरेदार और हिफ़ाज़त करने वाले थे। इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई (सम्मान) से इब्लीस के दिल में तकब्बुर यानि घमण्ड पैदा हो गया यहाँ तक कि उसने यह कह दिया कि अल्लाह तआला ने जो कुछ मुझे अता किया है वह मेरी ज़ाती इबादत और रियाज़त का इनाम और फल है।”
जब अल्लाह तआला ने आदम ے को पैदा फ़रमाया तो फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करें सबने हुक्म की तामील की लेकिन इब्लीस ने इंकार किया और अल्लाह तआला की नाफ़रमानी की। अल्लाह तआला तमाम भेद जानता है इब्लीस से सवाल किया तुझे किस चीज़ ने आदम को सजदा करने से रोका। उसने जवाब दिया ”मैं आदम से बेहतर हूँ तूने मुझे आग से और आदम को मिट्टी से पैदा किया।” शैतान का जवाब तकब्बुर  और जहालत वाला था। अल्लाह तआला इस पर ग़ज़बनाक हुआ और रान्दहे दरगाह कर दिया यानि अपनी रहमत से निकाल दिया और लानत का तौक़ उसकी गर्दन में डाल दिया। शैतान ने तौबा व इस्तग़फ़ार करने के बजाए अल्लाह तआला से खुली बग़ावत कर दी और क़यामत तक के लिए आदम ے की नस्लों को बहकाने के लिए मोहलत माँग ली। अल्लाह पाक के इल्म और हिकमत का भी यही तक़ाज़ा था कि औलादे आदम की आज़माइश की जाये। लिहाज़ा उसकी दरख़्वास्त मंज़ूर की गई। उसे लम्बी उम्र अता की और साथ में वो सामान भी जो नस्ले आदम को गुमराह करने के लिए चाहिए थे।
इब्ने अब्बासک, के एक दूसरे क़ौल के मुताबिक़-
“इब्लीस आसमाने दुनिया, ज़मीन और उसके दरमियान सब इलाक़े का बादशाह और निज़ाम चलाने वाला था और साथ ही जन्नत की हिफ़ाज़त का भी ज़िम्मेदार था। इब्लीस अल्लाह तआला की बहुत इबादत करता था और उसमें बहुत ज़्यादा तकलीफ़ें उठाता था, इस वजह से वह ख़ुदपसन्दी का शिकार हो गया और अपने आप को बहुत बड़ा और बहुत ऊँचे मर्तबे वाला समझने लगा और आख़िरकार उसने अल्लाह तआला के सामने भी अपने घमण्ड को ज़ाहिर कर दिया। ”
इब्ने अब्बासک, के एक क़ौल के मुताबिक़-
“ज़मीन पर इंसानो की तख़लीक़ से पहले जिन्नात आबाद थे। एक बार उन्होंने ज़मीन पर फ़साद फैलाया, एक दूसरे को क़त्ल किया और ख़ून बहाया। अल्लाह तआला ने इनके फ़साद को ख़त्म करने के लिए इब्लीस को फ़रिश्तों के एक गिरोह के साथ भेजा। यह वह ही गिरोह था जिसे जिन्न कहा जाता है। इब्लीस ने और उन फ़रिश्तों के गिरोह ने इनसे जंग की और इन्हें जज़ीरो और दूर दराज़ के पहाड़ों में धकेल दिया। इस कारनामे से उसमे ग़ुरूर पैदा हो गया। अल्लाह इसके गरूर को जान गया लेकिन फ़रिश्ते न जान सके।”
इब्लीस का घमण्डः-
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में फ़रमाता है कि-
और उनमें जो कहे कि मैं अल्लाह के सिवा माबूद हूँ तो उसे हम जहन्नुम की जज़ा देंगे, हम ऐसी ही सज़ा देते हैं सितमगारों को।
(सूरह अल अम्बिया, आयत- 29)
इस आयत की तफ़सीर में इब्ने जरीह रहमातुल्लाह अलैह लिखते हैं कि-
”फ़रिश्तों में सब से पहले जिसने यह बात कही कि अल्लाह के बजाए मैं माबूद हूँ वो इब्लीस लईन है ” 
हज़रत क़तादह रहमातुल्लाह अलैह  फ़रमाते हैं कि-
“यह आयत अल्लाह के दुश्मन इब्लीस के बारे में उतरी। अल्लाह ने इस पर लानत फ़रमाई और इसे अपनी रहमत से निकाल दिया। और फ़रमाया हम इसे दोज़ख़ की सज़ा देंगे और ज़ालिमों को हम इसी तरह का बदला दिया करते हैं।”
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में एक जगह और इरशाद फ़रमाता है-
“और याद करो जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया सिवाए इब्लीस के, मुन्किर हुआ ग़ुरूर किया और काफ़िर हो गया।)”
(सूरह अलबक़राह, आयत- 34)
इब्लीस को ऐसा घमण्ड क्यों हुआ कि उसने न सिर्फ़ अल्लाह का हुक्म मानने से इन्कार किया बल्कि ख़ुदाई का भी दावा कर बैठा इसके बारे उलमा के बहुत से क़ौल हैं।
शैतान इब्लीस कौन था?
इब्लीस फ़रिश्तों का सरदार था और जन्नत के बाग़ों की देखभाल करता था। उसको दुनिया और आसमान दोनों की बादशाहत मिली हुई थी।
(इब्ने जरीह रहमातुल्लाह अलैह से रिवायत, इब्ने अब्बास ک के हवाले से)
फ़रिश्तों का एक क़बीला जिन्नात से ताल्लुक़ रखता था इब्लीस उन्हीं में से था। इस क़बीले के फ़रिश्तों को आग की गर्म लौ से पैदा किया गया था यह लौ शोले की तरह नज़र नहीं आती लेकिन सिर्फ़ महसूस की जा सकती है और सारी गर्मी इसी में होती है। इस क़बीले के अलावा बाक़ी सब फ़रिश्तों को नूर से पैदा फ़रमाया था। इब्लीस का नाम हारिस था दूसरी रिवायत में अज़ाज़ील भी आया है और यह जन्नत के पहरेदारों में से था।
(इब्ने अब्बास ک की रिवायत)
सब से पहले आदम ے को दुनिया में भेजा गया। हज़रत आदम ے को अबुलबशर यानि सब इन्सानों का बाप कहा जाता है।  दुनिया में जितने भी इन्सान शुरू से आख़िर तक आ चुके हैं या आयेंगे सब हज़रत आदम ے की ही औलाद हैं इसी लिये इन्हें “आदमी” कहा जाता है। जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम ے की पैदाइश का इरादा फ़रमाया और फ़रिश्तों से अर्ज़ किया कि मैं ज़मीन में अपना ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ उस वक़्त ज़मीन में जिन्नात रहते थे और “इब्लीस” की बादशाहत थी लिहाज़ा आपके बारे में कुछ बताने से पहले शैतान इब्लीस का ज़िक्र करना ज़रूरी है क्योंकि इस वाक़िये का शैतान से गहरा ताल्लुक़ है।
इब्लीस-ए-लईनः-
अल्लाह तआला ने इस मख़लूक़ को बहुत ख़ूबसूरत बनाया था और शराफ़त व बुज़र्गी से भी नवाज़ा था। ज़मीन और दुनिया के आसमान की बादशाहत दी थी। इसके अलावा उसे जन्नत की पहरेदारी के इनाम से भी नवाज़ा था। लेकिन उसने अल्लाह के सामने घमण्ड किया और ख़ुदाई का दावा कर बैठा जिसकी वजह से अल्लाह तआला ने उसे अपनी बारगाह से निकाल दिया और उसे शैतान में बदल दिया। उसकी शक्ल बिगाड़ दी और सारे रुतबे जो अल्लाह तआला ने उसे अता किये थे छीन लिये। उस पर अपनी लानत फ़रमाई, उसको अपने आसमानों से निकाल दिया और आख़िरत में उसको और उसकी पैरवी करने वालों का ठिकाना जहन्नुम क़रार दिया। 

नमाज़ की अहमियत और फ़ज़ीलत

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में नमाज़ का हुक्म फरमाता है-
وَاَقِیۡمُوا الصَّلٰوۃَ وَاٰتُوا الزَّکٰوۃَ وَارْکَعُوۡا مَعَ الرّٰکِعِیۡنَ
(और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रुकू करने वालों के साथ रुकू करो)
 (सूरह अलबक़रा, आयत- 43)
और फ़रमाया
اِنَّ الصَّلٰوۃَ تَنْہٰی عَنِ الْفَحْشَآءِ وَالْمُنۡکَرِ
(बेशक नमाज़ मना करती है बेहयाई और बुरी बातों से)
(सूरह अलअनकबूत, आयत- 45)
जो शख़्स पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें तमाम शर्तों के साथ सही वक़्तों पर पाबन्दी से अदा करता रहेगा उसके लिये वादा है कि हमेशा अल्लाह की हिफ़ाज़त और आमान में रहेगा। कबीरा (बड़े) गुनाहों से जब आदमी बचा रहता है तो जो भी सग़ीरा (छोटे) गुनाह उससे होते हैं वह पाँचों वक़्त की नमाज़ की बदौलत माफ़ हो जाते हैं।
हुज़ूर सय्यदे आलम گ ने इरशाद फ़रमाया:-
बताओ तो किसी के दरवाज़े पर नहर हो वह उस में हर रोज़ पाँच बार नहाये तो क्या उसके बदन पर मैल रह जाएगा। सिहाबा-ए-किराम ने अर्ज़ की  “नहीं ”। फ़रमाया यही मिसाल पाँचों नमाज़ों की है कि अल्लाह तआला इनके सबब ख़ताओं को मिटा देता है।
(सही मुस्लिम)
नमाज़ के बारे में हुज़ूर सय्यदे आलम گ के फ़रमान हैं किः-
  • इस्लाम में सबसे ज़्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब चीज़ वक़्त में नमाज़ पढ़ना है और जिस ने नमाज़ छोड़ी उस का कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून है।
(शैबुल ईमान)
  • जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हों तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब दस बरस के हो जायें तो मार कर पढ़ाओ।
(सुनन अबू दाऊद)
  • क़यामत के दिन सबसे पहले बन्दे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर यह सही हुई तो बाक़ी आमाल भी ठीक रहेंगे और यह बिगड़़ी तो सभी बिगड़े। 
(तिबरानी)
  • जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत (पाकी)।
(सही मुस्लिम)
  • अल्लाह तआला ने कोई ऐसी चीज़ फ़र्ज़ न की जो तौहीद और नमाज़ से बेहतर हो अगर इससे बेहतर कोई चीज़ होती तो वह ज़रूर फ़रिश्तों पर फ़र्ज़ करता। उनमें कोई रुकू में है कोई सजदे में।

#Entertainment

Entertainment Entertainment is a form of activity that holds the attention and interest of an audience or gives pleasure and delight. It ...