Thursday 17 August 2017

दिल में दबा रक्खा है by डॉ. अतहर खान

मेने दर्द को अपने दिल में दबा रक्खा है ।
क्या गुनाह किया जो ज़माने से छिपा रक्खा है ।।

किसी को नहीं है हक़ कि कोई मुझसे ये पूछे ।
कि राज़ किसका मेने सीने में दबा रक्खा है ।।

बहुत शिद्दत से चाहा था जिसको मैने कभी ।
ख्वाबों को उसके मेरी पलकों ने छिपा रक्खा है ।।

याद होंगे उसको भी मुहब्बत के वो लम्हें ।
जिन लम्हों ने नीदों को मेरी उड़ा रक्खा है ।।

मै आशिक़ हूँ उसका उसे नहीं मालूम 'अतहर' ।
नफरतों को उसकी मेने हवाओं में उड़ा रक्खा है ।।

न जाने कब लोट आये मेरे उजड़े हुये दिल में वो बहार बन कर।
इसी उम्मीद से मेने दिल का दरवाज़ा खुला रक्खा है ।।

सर. अतहर खान...✍

शबनम कह दिया by डॉ. अतहर खान

उनके लबों की मुस्कराहट को गुलशन कह दिया ।
उनकी आँखों के अश्क़ों को शबनम कह दिया ।।

और अब कहने को बाक़ी रह भी क्या गया ।
जब परवाने ने शमा को हमदम कह दिया ।।

डॉ. अतहर खान...✍

बागों में बहार by डॉ. अतहर खान

वो आये तो लगा जेसे ख़िज़ाँ में बहार है ।
इक नज़र देखने उनको मेरा दिल बेक़रार है ।।

कैसे समझाऊं मै उनको, ये ख़ुद मै समझ नहीं पाता ।
चले आओ आगिश में अब तो बागों  में बहार है ।

सर. अतहर खान...✍

दोस्ती by डॉ. अतहर खान

रिश्ते तो सभी निभाते हैं कभी दोस्ती भी निभाया करो ।
ख़ुशी में तो सभी आते हैं ग़मों में भी दोस्त पर साया करो ।

इक दोस्त ही है जिससे कह सकते हो दिल की हर बात ।
मुफलिसी में हो दोस्त कभी न उसका मज़ाक़ उड़ाया करो ।।

वो दोस्त ही हैं जो हर पल साढ़े निभाते हैं ।
ऐसे दोस्तों को न नज़रों से अपनी गिराया करो ।।

डॉ. अतहर खान...✍

आज़ाद-ए-हिन्द by डॉ. अतहर खान

70 बरस हुये आज़ाद-ए-हिन्द को,
अभी भी हमको वह हिन्दुस्ताँ नहीं मिलता ।

नहीं आती हो जिसमे से नफ़रतों की बू ,
अभी भी गुलशन में वो फूल नहीं खिलता ।।

जश्ने आज़ादी...✍

डॉ. अतहर खान

जान की बाज़ी लगा कर इस तिरंगे को हमने लहराया है ।
किस मुहँ से वो नादान कहता है मुसलमानो के लिये ये देश पराया है ।।

डॉ. अतहर खान...✍

जंगे आज़ादी by डॉ. अतहर खान

जंगे आज़ादी में जो बहा वो लाहू हमारा भी था ।

सिर्फ बंदेमातरम् कह देना ही देशभक्ति नहीं इस मिटटी में जो मिला वो जिस्म हमारा ही था ।।

डॉ. अतहर खान...✍

Saturday 5 August 2017

दोस्ती की शायरी ...✍

दिन हुआ है तो रात भी होगी,
हो मत उदास, कभी बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है,
जिन्दगी रही तो मुलाकात भी होगी.

दिल की शायरी...✍

तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो,
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो,
प्यार का तालुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे सिसक रहा था वो..

तस्वीर...✍

सिगरेट  जलाई  थी  तेरी  याद  भूलाने  को ,

मगर  कम्बख्त  धुये  ने  तेरी  तस्वीर  बना  डाली ।

दोस्ती की शायरी...✍

*मंज़र भी बेनूर थे और फिज़ाएँ भी बेरंग थी.*
*बस दोस्त याद आए और मौसम सुहाना हो गया..!!*

*लोग हँसने का मतलब तो जानते है..!!*
*पर रोने की अहेमियत नहीं समझते...!!!*

*कितने कमाल की होती है ना दोस्ती.......*
*वजन होता है...लेकिन बोझ नही होती......*

हिन्दुस्तान कहते हैं ...

हम अपनी जान के दुश्मन काे अपनी जान कहते है.
माैहबत की इसी मिटटी काे हिन्दुस्तान कहते है.
जाे यह दीवार का सुराख है साजिश का हिस्सा है.
मगर हम इसकाे अपने घर का राेशन दान कहते है.
मेरे अंदर से एक एक करके सब हाे गया रुख़सत .
मगर इक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते है.

मुनव्वर राना शायरी ...✍

मेरा खुलूस तो पूरब के गाँव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है 

रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं 

वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा 

कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है

मुनव्वर राना शायरी ...✍

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया 

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है 

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ 

मुनव्वर राना शायरी ...✍

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई 

ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया 

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है 

मुनव्वर राना शायरी ...✍

गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं 

कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है 

मुनव्वर राना शायरी ...✍

इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा 

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है 

मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है 

पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है 
 
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है 

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा 

देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई 

मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है 

मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता 

अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता

मुनव्वर राना शायरी .....✍

हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते 

हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं 

हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह 

सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते 

सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं 

मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है 

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना 

भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े 

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती 

तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा

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Entertainment Entertainment is a form of activity that holds the attention and interest of an audience or gives pleasure and delight. It ...