मेने दर्द को अपने दिल में दबा रक्खा है ।
क्या गुनाह किया जो ज़माने से छिपा रक्खा है ।।
किसी को नहीं है हक़ कि कोई मुझसे ये पूछे ।
कि राज़ किसका मेने सीने में दबा रक्खा है ।।
बहुत शिद्दत से चाहा था जिसको मैने कभी ।
ख्वाबों को उसके मेरी पलकों ने छिपा रक्खा है ।।
याद होंगे उसको भी मुहब्बत के वो लम्हें ।
जिन लम्हों ने नीदों को मेरी उड़ा रक्खा है ।।
मै आशिक़ हूँ उसका उसे नहीं मालूम 'अतहर' ।
नफरतों को उसकी मेने हवाओं में उड़ा रक्खा है ।।
न जाने कब लोट आये मेरे उजड़े हुये दिल में वो बहार बन कर।
इसी उम्मीद से मेने दिल का दरवाज़ा खुला रक्खा है ।।
सर. अतहर खान...✍
क्या गुनाह किया जो ज़माने से छिपा रक्खा है ।।
किसी को नहीं है हक़ कि कोई मुझसे ये पूछे ।
कि राज़ किसका मेने सीने में दबा रक्खा है ।।
बहुत शिद्दत से चाहा था जिसको मैने कभी ।
ख्वाबों को उसके मेरी पलकों ने छिपा रक्खा है ।।
याद होंगे उसको भी मुहब्बत के वो लम्हें ।
जिन लम्हों ने नीदों को मेरी उड़ा रक्खा है ।।
मै आशिक़ हूँ उसका उसे नहीं मालूम 'अतहर' ।
नफरतों को उसकी मेने हवाओं में उड़ा रक्खा है ।।
न जाने कब लोट आये मेरे उजड़े हुये दिल में वो बहार बन कर।
इसी उम्मीद से मेने दिल का दरवाज़ा खुला रक्खा है ।।
सर. अतहर खान...✍