हिन्दुस्तान के राजा दशरथ के कर्इ पतिनयां थी। इसी तरह कृष्णाजी को भी हम रूक्मिणी, सत्यबा और राधा के अलावा असंख्य गोपियों के बीच देखते हैं।
बल्ली औरतों के साथ मरगन जैसे देवता को हम ऐश करते हुए पाते हैं।
यह तो थी प्राचीन काल और पुराणों की बात, अब ऐतिहासिक घटनाओं को लीजिए।
बड़े-बड़े राजाओं के यहॉ एक से अधिक पत्नियॉ होती थी। तमिलनाडू के कटटा बम्मन के घर कर्इ पत्नियां थी।
आज भी कुछ राजनैतिक नेता कर्इ पत्नियां रखते हैं।
इस्लाम से पहले अरब मे पत्नियों की संख्या पर कोर्इ हदबन्दी नही थी। प्यारे नबी ने मर्द के स्वभाव और अमली जरूरतों का ध्यान रख कर इस असीम संख्या को चार तक सीमित रखा।
इस्लाम से पहले अरब दुनिया में शादी विवाह का कोर्इ विशेष नियम और सिद्धान्त न था। गिरोहो और कबीलों के बीच पत्नियॉ और दासियां रखने जब चाहा तलाक दे दी, इन हालात के सुधार के लिए खुदा के निर्देश आये, पत्नियों की संख्या को सीमित कर दिया गया और तलाक के सम्बन्ध में उचित नियमों और शिष्टाचार की पाबन्दी का हुक्म दियागया कुरआन में फरमाया गया।
‘‘ तुम्हे अगर आशंका हो कि यतीम बच्चो की परवरिश बगैर शादी किये न हो सकेगी तो अपनी पसन्द की दो, तीन या चार औरतों से तुम विवाह कर सकते हो (यह आशंका हो कि उनके साथ भी तुम न्याय न कर पाओगे तो) और औरत या दासी ही पर बस करो, अन्याय से बचने के लिए यह आसान तरीका हैं। (निसा 6)
क्ुरआन की इस हिदायत मे जो हिकमते और भलार्इयां हैं उन पर भी विचार कीजिए। न्याय, इंसाफ तथा सच्चार्इ के साथ पत्नी से पेश आओ। बहुस्त्रीवाद की अनुमति भी हैं और इसी के साथ-साथ नाइंसाफी से बचने की ताकीद भी। न्याय और इन्साफ सम्भव न हो तो एक ही शादी पर जोर दिया गया हैं।
मर्द को किसी भी समय अपनी काम तृष्णा की जरूरत पेश आ सकती हैं। इसलिए कि उसे कुदरत ने हर हाल मे हमेशा सहवास के योग्य बनाया हैं जबकि औरतों का मामला इससे भिन्न हैं।
माहवारी के दिनो मे, गर्भावस्था में (नौ-दस माह) प्रसव के बाद के कुछ माह औरत इस योग्य नही होती कि उसके साथ उसका पति सम्भोग कर सके।
सारे ही मर्दो से यह आशा रखना सही न होगा कि वे बहुत ही संयम और नियन्त्रण से काम लेंगे और जब तक उन की पत्नियां इस योग्य नही हो जाती कि वे उनके पास जायें, वे काम इच्छा को नियंत्रित रखेंगे। मर्द जायज तरीके से अपनी जरूरत पूरी कर सके, जरूरी है कि इसके लिए राहे खोली जायें और ऐसी तंगी न रखी जाय कि वह हराम रास्तों पर चलने पर विवश हों। पत्नी तो उसकी एक ही हो, आशना औरतों की कोर्इ कैद न रहे। इससे समाज मे जो गन्दगी फैलेगी और जिस तरह आचरण और चरित्र खराब होंगे इसका अनुमान लगाना आपके लिए कुछ मुश्किल नही हैं।
व्यभिचार और बदकारी को हराम ठहराकर बहुस्त्रीवाद की कानूनी इजाजत देने वाला बुद्धिसंगत दीन इस्लाम हैं।
एक से अधिक शादियों क मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा हैं और इस तरह हमारी दृष्टि में इस्लाम बिल्कुल एक वैज्ञानिक धर्म साबित होता हैं। यह एक हकीकत है, जिसपर मेरा दृढ़ और अटल विश्वास हैं।
From Islam sabke liye.
बल्ली औरतों के साथ मरगन जैसे देवता को हम ऐश करते हुए पाते हैं।
यह तो थी प्राचीन काल और पुराणों की बात, अब ऐतिहासिक घटनाओं को लीजिए।
बड़े-बड़े राजाओं के यहॉ एक से अधिक पत्नियॉ होती थी। तमिलनाडू के कटटा बम्मन के घर कर्इ पत्नियां थी।
आज भी कुछ राजनैतिक नेता कर्इ पत्नियां रखते हैं।
इस्लाम से पहले अरब मे पत्नियों की संख्या पर कोर्इ हदबन्दी नही थी। प्यारे नबी ने मर्द के स्वभाव और अमली जरूरतों का ध्यान रख कर इस असीम संख्या को चार तक सीमित रखा।
इस्लाम से पहले अरब दुनिया में शादी विवाह का कोर्इ विशेष नियम और सिद्धान्त न था। गिरोहो और कबीलों के बीच पत्नियॉ और दासियां रखने जब चाहा तलाक दे दी, इन हालात के सुधार के लिए खुदा के निर्देश आये, पत्नियों की संख्या को सीमित कर दिया गया और तलाक के सम्बन्ध में उचित नियमों और शिष्टाचार की पाबन्दी का हुक्म दियागया कुरआन में फरमाया गया।
‘‘ तुम्हे अगर आशंका हो कि यतीम बच्चो की परवरिश बगैर शादी किये न हो सकेगी तो अपनी पसन्द की दो, तीन या चार औरतों से तुम विवाह कर सकते हो (यह आशंका हो कि उनके साथ भी तुम न्याय न कर पाओगे तो) और औरत या दासी ही पर बस करो, अन्याय से बचने के लिए यह आसान तरीका हैं। (निसा 6)
क्ुरआन की इस हिदायत मे जो हिकमते और भलार्इयां हैं उन पर भी विचार कीजिए। न्याय, इंसाफ तथा सच्चार्इ के साथ पत्नी से पेश आओ। बहुस्त्रीवाद की अनुमति भी हैं और इसी के साथ-साथ नाइंसाफी से बचने की ताकीद भी। न्याय और इन्साफ सम्भव न हो तो एक ही शादी पर जोर दिया गया हैं।
मर्द को किसी भी समय अपनी काम तृष्णा की जरूरत पेश आ सकती हैं। इसलिए कि उसे कुदरत ने हर हाल मे हमेशा सहवास के योग्य बनाया हैं जबकि औरतों का मामला इससे भिन्न हैं।
माहवारी के दिनो मे, गर्भावस्था में (नौ-दस माह) प्रसव के बाद के कुछ माह औरत इस योग्य नही होती कि उसके साथ उसका पति सम्भोग कर सके।
सारे ही मर्दो से यह आशा रखना सही न होगा कि वे बहुत ही संयम और नियन्त्रण से काम लेंगे और जब तक उन की पत्नियां इस योग्य नही हो जाती कि वे उनके पास जायें, वे काम इच्छा को नियंत्रित रखेंगे। मर्द जायज तरीके से अपनी जरूरत पूरी कर सके, जरूरी है कि इसके लिए राहे खोली जायें और ऐसी तंगी न रखी जाय कि वह हराम रास्तों पर चलने पर विवश हों। पत्नी तो उसकी एक ही हो, आशना औरतों की कोर्इ कैद न रहे। इससे समाज मे जो गन्दगी फैलेगी और जिस तरह आचरण और चरित्र खराब होंगे इसका अनुमान लगाना आपके लिए कुछ मुश्किल नही हैं।
व्यभिचार और बदकारी को हराम ठहराकर बहुस्त्रीवाद की कानूनी इजाजत देने वाला बुद्धिसंगत दीन इस्लाम हैं।
एक से अधिक शादियों क मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा हैं और इस तरह हमारी दृष्टि में इस्लाम बिल्कुल एक वैज्ञानिक धर्म साबित होता हैं। यह एक हकीकत है, जिसपर मेरा दृढ़ और अटल विश्वास हैं।
From Islam sabke liye.