Wednesday 7 December 2016

नमाज़ की अहमियत और फ़ज़ीलत

بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में नमाज़ का हुक्म फरमाता है-
وَاَقِیۡمُوا الصَّلٰوۃَ وَاٰتُوا الزَّکٰوۃَ وَارْکَعُوۡا مَعَ الرّٰکِعِیۡنَ
(और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रुकू करने वालों के साथ रुकू करो)
 (सूरह अलबक़रा, आयत- 43)
और फ़रमाया
اِنَّ الصَّلٰوۃَ تَنْہٰی عَنِ الْفَحْشَآءِ وَالْمُنۡکَرِ
(बेशक नमाज़ मना करती है बेहयाई और बुरी बातों से)
(सूरह अलअनकबूत, आयत- 45)
जो शख़्स पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ें तमाम शर्तों के साथ सही वक़्तों पर पाबन्दी से अदा करता रहेगा उसके लिये वादा है कि हमेशा अल्लाह की हिफ़ाज़त और आमान में रहेगा। कबीरा (बड़े) गुनाहों से जब आदमी बचा रहता है तो जो भी सग़ीरा (छोटे) गुनाह उससे होते हैं वह पाँचों वक़्त की नमाज़ की बदौलत माफ़ हो जाते हैं।
हुज़ूर सय्यदे आलम گ ने इरशाद फ़रमाया:-
बताओ तो किसी के दरवाज़े पर नहर हो वह उस में हर रोज़ पाँच बार नहाये तो क्या उसके बदन पर मैल रह जाएगा। सिहाबा-ए-किराम ने अर्ज़ की  “नहीं ”। फ़रमाया यही मिसाल पाँचों नमाज़ों की है कि अल्लाह तआला इनके सबब ख़ताओं को मिटा देता है।
(सही मुस्लिम)
नमाज़ के बारे में हुज़ूर सय्यदे आलम گ के फ़रमान हैं किः-
  • इस्लाम में सबसे ज़्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब चीज़ वक़्त में नमाज़ पढ़ना है और जिस ने नमाज़ छोड़ी उस का कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून है।
(शैबुल ईमान)
  • जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हों तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब दस बरस के हो जायें तो मार कर पढ़ाओ।
(सुनन अबू दाऊद)
  • क़यामत के दिन सबसे पहले बन्दे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर यह सही हुई तो बाक़ी आमाल भी ठीक रहेंगे और यह बिगड़़ी तो सभी बिगड़े। 
(तिबरानी)
  • जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत (पाकी)।
(सही मुस्लिम)
  • अल्लाह तआला ने कोई ऐसी चीज़ फ़र्ज़ न की जो तौहीद और नमाज़ से बेहतर हो अगर इससे बेहतर कोई चीज़ होती तो वह ज़रूर फ़रिश्तों पर फ़र्ज़ करता। उनमें कोई रुकू में है कोई सजदे में।

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