Tuesday 6 December 2016

ज़कात का नकद फायदा
ज़कात अदा करने से बलायें और मुसीबतें टाल दी जाती हैं। हदीस में है सदका झटपट दिया करो। इसलिए कि मुसीब सदके से आगे नहीं बढ़ती। एक दूसरी हदीस में है बेशक सदका अल्लाह तआला के गुस्से को ठंडा कर देता है। बुरी मौत से बचाता है यानी सख्त बीमारी और संगीन हालत से बचाने में मुफीद है। एक हदीस में ज़कात अदा करके अपने अमवाल की मजबूत हिफाज़त का इन्तिज़ाम करो और सदके के जरिए अपने मरीजों का इलाज करो और दुआबे गिरयादारी के जरिए आसमानों के तूफानों का मुकाबला करो। 
ज़कात देने से मिलती है अल्लाह की रज़ा
ज़कात देने से माल पाक होता है और अल्लाह तआला की रज़ा हासिल होती है। जबकि ज़कात न देने से माल नापाक रहता है और अल्लाह तआला नाराज होता है। कुरआन और हदीस में ज़कात के बड़े फजाइल बयान किए गये हैं। 
सदकतुल फितर के लिए साल गुजरना जरूरी नहीं
जकात हर साहिब ए निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तौले चांदी या साढ़े सात तौले सोना हो या फिर इनकी कीमत जितना नकद रूपया हो। जकात के लिए साल गुजरना शर्त है, यानी किसी शख्स के पास छह-सात माह से इतना पैसा है कि जिससे वो इतना जेवर खरीद सकता है तो उस पर जकात फर्ज नहीं हुई। हां उस पर सदकतुल फितर वाजिब है। क्योंकि सदकतुल फितर के लिए साल गुजरने शर्त नहीं है। 
ज़कात अदा ना करने पर वअीद
जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उन को अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते सो आप उनको एक बड़े दर्दनाक अज़ाब की खबर सुनी दीजिए। अव्वल उनको दोजख की आग में तपाया जाएगा। फिर उस माल से उन लोगों की पेशानियां और उन की करवट और उन की पुश्तों को दाग दिया जाएगा। और उन से कहा जाएगा यह वो माल है जिस को तुम ने अपने वास्ते जमा करके रखा था। सो अब अपने जमा करने का मज़ा चखो (कुरआन करीम-सूर ए तोबा)।
हदीस: हजरत इब्ने मसऊद फरमाते हैं कि रसूल अकरम सल. ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स अपने माल की ज़कात अदा नहीं करता क्यामत के दिन उस का माल गंजे सांप की शक्ल में उसकी गर्दन में डाल दिया जाएगा और वो कहेगा- मैं तेरा माल हूं।

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