Tuesday, 12 September 2017
Saturday, 9 September 2017
Thursday, 7 September 2017
Friday, 1 September 2017
Thursday, 31 August 2017
Thursday, 17 August 2017
दिल में दबा रक्खा है by डॉ. अतहर खान
मेने दर्द को अपने दिल में दबा रक्खा है ।
क्या गुनाह किया जो ज़माने से छिपा रक्खा है ।।
किसी को नहीं है हक़ कि कोई मुझसे ये पूछे ।
कि राज़ किसका मेने सीने में दबा रक्खा है ।।
बहुत शिद्दत से चाहा था जिसको मैने कभी ।
ख्वाबों को उसके मेरी पलकों ने छिपा रक्खा है ।।
याद होंगे उसको भी मुहब्बत के वो लम्हें ।
जिन लम्हों ने नीदों को मेरी उड़ा रक्खा है ।।
मै आशिक़ हूँ उसका उसे नहीं मालूम 'अतहर' ।
नफरतों को उसकी मेने हवाओं में उड़ा रक्खा है ।।
न जाने कब लोट आये मेरे उजड़े हुये दिल में वो बहार बन कर।
इसी उम्मीद से मेने दिल का दरवाज़ा खुला रक्खा है ।।
सर. अतहर खान...✍
क्या गुनाह किया जो ज़माने से छिपा रक्खा है ।।
किसी को नहीं है हक़ कि कोई मुझसे ये पूछे ।
कि राज़ किसका मेने सीने में दबा रक्खा है ।।
बहुत शिद्दत से चाहा था जिसको मैने कभी ।
ख्वाबों को उसके मेरी पलकों ने छिपा रक्खा है ।।
याद होंगे उसको भी मुहब्बत के वो लम्हें ।
जिन लम्हों ने नीदों को मेरी उड़ा रक्खा है ।।
मै आशिक़ हूँ उसका उसे नहीं मालूम 'अतहर' ।
नफरतों को उसकी मेने हवाओं में उड़ा रक्खा है ।।
न जाने कब लोट आये मेरे उजड़े हुये दिल में वो बहार बन कर।
इसी उम्मीद से मेने दिल का दरवाज़ा खुला रक्खा है ।।
सर. अतहर खान...✍
शबनम कह दिया by डॉ. अतहर खान
उनके लबों की मुस्कराहट को गुलशन कह दिया ।
उनकी आँखों के अश्क़ों को शबनम कह दिया ।।
और अब कहने को बाक़ी रह भी क्या गया ।
जब परवाने ने शमा को हमदम कह दिया ।।
डॉ. अतहर खान...✍
उनकी आँखों के अश्क़ों को शबनम कह दिया ।।
और अब कहने को बाक़ी रह भी क्या गया ।
जब परवाने ने शमा को हमदम कह दिया ।।
डॉ. अतहर खान...✍
बागों में बहार by डॉ. अतहर खान
वो आये तो लगा जेसे ख़िज़ाँ में बहार है ।
इक नज़र देखने उनको मेरा दिल बेक़रार है ।।
कैसे समझाऊं मै उनको, ये ख़ुद मै समझ नहीं पाता ।
चले आओ आगिश में अब तो बागों में बहार है ।
सर. अतहर खान...✍
इक नज़र देखने उनको मेरा दिल बेक़रार है ।।
कैसे समझाऊं मै उनको, ये ख़ुद मै समझ नहीं पाता ।
चले आओ आगिश में अब तो बागों में बहार है ।
सर. अतहर खान...✍
दोस्ती by डॉ. अतहर खान
रिश्ते तो सभी निभाते हैं कभी दोस्ती भी निभाया करो ।
ख़ुशी में तो सभी आते हैं ग़मों में भी दोस्त पर साया करो ।
इक दोस्त ही है जिससे कह सकते हो दिल की हर बात ।
मुफलिसी में हो दोस्त कभी न उसका मज़ाक़ उड़ाया करो ।।
वो दोस्त ही हैं जो हर पल साढ़े निभाते हैं ।
ऐसे दोस्तों को न नज़रों से अपनी गिराया करो ।।
डॉ. अतहर खान...✍
ख़ुशी में तो सभी आते हैं ग़मों में भी दोस्त पर साया करो ।
इक दोस्त ही है जिससे कह सकते हो दिल की हर बात ।
मुफलिसी में हो दोस्त कभी न उसका मज़ाक़ उड़ाया करो ।।
वो दोस्त ही हैं जो हर पल साढ़े निभाते हैं ।
ऐसे दोस्तों को न नज़रों से अपनी गिराया करो ।।
डॉ. अतहर खान...✍
आज़ाद-ए-हिन्द by डॉ. अतहर खान
70 बरस हुये आज़ाद-ए-हिन्द को,
अभी भी हमको वह हिन्दुस्ताँ नहीं मिलता ।
नहीं आती हो जिसमे से नफ़रतों की बू ,
अभी भी गुलशन में वो फूल नहीं खिलता ।।
जश्ने आज़ादी...✍
अभी भी हमको वह हिन्दुस्ताँ नहीं मिलता ।
नहीं आती हो जिसमे से नफ़रतों की बू ,
अभी भी गुलशन में वो फूल नहीं खिलता ।।
जश्ने आज़ादी...✍
डॉ. अतहर खान
जान की बाज़ी लगा कर इस तिरंगे को हमने लहराया है ।
किस मुहँ से वो नादान कहता है मुसलमानो के लिये ये देश पराया है ।।
डॉ. अतहर खान...✍
किस मुहँ से वो नादान कहता है मुसलमानो के लिये ये देश पराया है ।।
डॉ. अतहर खान...✍
जंगे आज़ादी by डॉ. अतहर खान
जंगे आज़ादी में जो बहा वो लाहू हमारा भी था ।
सिर्फ बंदेमातरम् कह देना ही देशभक्ति नहीं इस मिटटी में जो मिला वो जिस्म हमारा ही था ।।
डॉ. अतहर खान...✍
सिर्फ बंदेमातरम् कह देना ही देशभक्ति नहीं इस मिटटी में जो मिला वो जिस्म हमारा ही था ।।
डॉ. अतहर खान...✍
Monday, 14 August 2017
Monday, 7 August 2017
Saturday, 5 August 2017
दोस्ती की शायरी ...✍
दिन हुआ है तो रात भी होगी,
हो मत उदास, कभी बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है,
जिन्दगी रही तो मुलाकात भी होगी.
हो मत उदास, कभी बात भी होगी,
इतने प्यार से दोस्ती की है,
जिन्दगी रही तो मुलाकात भी होगी.
दिल की शायरी...✍
तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो,
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो,
प्यार का तालुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे सिसक रहा था वो..
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो,
प्यार का तालुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे सिसक रहा था वो..
दोस्ती की शायरी...✍
*मंज़र भी बेनूर थे और फिज़ाएँ भी बेरंग थी.*
*बस दोस्त याद आए और मौसम सुहाना हो गया..!!*
*लोग हँसने का मतलब तो जानते है..!!*
*पर रोने की अहेमियत नहीं समझते...!!!*
*कितने कमाल की होती है ना दोस्ती.......*
*वजन होता है...लेकिन बोझ नही होती......*
*बस दोस्त याद आए और मौसम सुहाना हो गया..!!*
*लोग हँसने का मतलब तो जानते है..!!*
*पर रोने की अहेमियत नहीं समझते...!!!*
*कितने कमाल की होती है ना दोस्ती.......*
*वजन होता है...लेकिन बोझ नही होती......*
हिन्दुस्तान कहते हैं ...
हम अपनी जान के दुश्मन काे अपनी जान कहते है.
माैहबत की इसी मिटटी काे हिन्दुस्तान कहते है.
जाे यह दीवार का सुराख है साजिश का हिस्सा है.
मगर हम इसकाे अपने घर का राेशन दान कहते है.
मेरे अंदर से एक एक करके सब हाे गया रुख़सत .
मगर इक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते है.
माैहबत की इसी मिटटी काे हिन्दुस्तान कहते है.
जाे यह दीवार का सुराख है साजिश का हिस्सा है.
मगर हम इसकाे अपने घर का राेशन दान कहते है.
मेरे अंदर से एक एक करके सब हाे गया रुख़सत .
मगर इक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते है.
मुनव्वर राना शायरी ...✍
मेरा खुलूस तो पूरब के गाँव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं
वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं
वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
मुनव्वर राना शायरी ...✍
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मुनव्वर राना शायरी ...✍
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मुनव्वर राना शायरी ...✍
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
मुनव्वर राना शायरी ...✍
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता
मुनव्वर राना शायरी .....✍
हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
Tuesday, 3 January 2017
- क़ुरआन पाक जो कलामे इलाही है अगर कोई उसे मख़लूक़ माने तो इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रह. और दूसरे इमामों ने उसे काफ़िर क़रार दिया है।
- उसको आलम की हर चीज़ का पूरा-पूरा इल्म है यहाँ तक कि दिल में आने वाले ख़्यालों का भी।
- उसके इल्म की कोई हद नहीं।
- हर ज़ाहिर (दिखने वाली) और छिपी हुई चीज़ उसे मालूम है।
- ज़ाती इल्म सिर्फ अल्लाह के लिए ही ख़ास है अगर कोई किसी और के इल्म को ज़ाती माने यानि अल्लाह के बग़ैर दिये माने तो वह काफ़िर है।
- हर चीज़ उसी की बनाई हुई है।
- वह ही सबको रोज़ी देता है।
- हर बुराई भलाई उसने अपने इल्म से मुक़द्दर कर दी यानि जैसा होने वाला था और जैसा कोई करने वाला था उसने अपने इल्म से लिख दिया। इसका मतलब यह नहीं कि जैसा उसने लिखा वैसा हमें करना पड़ा। उसके लिखने ने हमें मजबूर नहीं किया कि हम ऐसा करें बल्कि जो हम करने वाले थे उसने वह ही लिखा।
- अल्लाह सिम्त (दिशा), मकान, ज़माने वग़ैरा से पाक है।
- वह जो चाहे जैसा चाहे करे किसी को उस पर क़ाबू नहीं और न ही उसके मक़सद से उसे कोई रोक सकता है।
- उसे न तो नींद आती है और न ही ऊँघ।
- वह सारे जहानों का देखने वाला है। हमारा कोई भी काम उससे छिपा नहीं है।
- सारे जहान वालों का वह ही पालने वाला है।
- माँ-बाप से ज़्यादा मेहरबान और टूटे दिलों का सहारा है। सारी बड़ाईयाँ उसी के लिए हैं।
- गुनाहों का माफ़ करने वाला और तौबा क़ुबूल करने वाला है।
- ज़ालिम और गुनाहगारों पर क़हर और ग़ज़ब करने वाला है।
- वह जिसे चाहे इज़्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे।
- वह जिसे चाहे मरदूद कर दे यानि अपनी रहमत से निकाल दे और जिसको चाहे अपनी रहमत से अपने पास कर ले
- वह जिसे चाहे दे और जिससे चाहे छीन ले।
- वह जो करता है वह ही अदल और इंसाफ़ है और वह ज़ुल्म से पाक है।
- उसके चाहे बग़ैर कुछ भी नहीं हो सकता।
- उसके हर काम में कोई राज़ या मसलेहत है, चाहे वह हमें मालूम हो या नहीं।
- उसने दुनिया की हर चीज़ को कुछ सिफ़त (ख़ासियत) दी है जैसे आग जलाती है, पानी प्यास बुझाता है, आँख देखती है, कान सुनते हैं वग़ैरा – वग़ैरा लेकिन अगर वह चाहे तो न आग जलाए, न पानी प्यास बुझाए जैसे इब्राहीम ے को जब भड़कती आग में डाला गया तो वह उनको कुछ भी नुक़सान न पहुँचा सकी।
अल्लाह
- वह हर मुमकिन पर क़ादिर है, जो चीज़ नामुमकिन हो अल्लाह उससे पाक है जैसे दूसरा ख़ुदा मुहाल (Impossible) है, वैसे ही उसकी फ़ना भी मुहाल (Impossible) है।
- वह हर ऐब और नक़्स(कमी) से पाक है। झूठ, दग़ा, ज़ुल्म, बेईमानी, जहालत, बेहयाई वग़ैरा ऐब हैं और यह सब उसके लिए मुहाल हैं।
- वह ज़िंदा है और सबकी ज़िंदगी उसके इख़्तियार (क़ब्ज़े) में है। वह जब चाहे, जिसे चाहे जिलाये (यानि ज़िंदगी दे) और जब चाहे, जिसे चाहे मौत दे।
- हयात, क़ुदरत, सुनना, बोलना, देखना, चाहना और इल्म वग़ैरा उसकी ज़ाती सिफ़ात हैं लेकिन उसका सुनना कानो से नहीं, बोलना ज़ुबान से नही और देखना आँखो से नहीं, यह सब जिस्म हैं और अल्लाह जिस्म से पाक है।
- वह हर धीमी से धीमी आवाज़ सुनता है और हर उस छोटी से छोटी चीज़ को भी देखता है जो माइक्रोस्कोप से भी नज़र न आए।
- उसकी और सिफ़ात की तरह, उसका कलाम भी क़दीम यानि हमेशा से है हादिस या मख़लूक़ नहीं।
अल्लाह
- उसकी ज़ात और सिफ़ात के अलावा सभी चीज़ें हादिस हैं यानि पहले नहीं थीं बाद में अल्लाह तआला ने पैदा फ़रमाईं।
- जो उसकी सिफ़ात को मख़लूक़ माने वो गुमराह व बद दीन है।
- जो आलम की किसी भी चीज़ को यह माने कि वो हमेशा से है वह काफ़िर है।
- वह न किसी का बाप, न बेटा और न उसकी कोई बीवी है उसके लिये बाप, बेटा या बीवी वग़ैरा मानने वाला काफ़िर है।
मुसलमान होने के नाते हमें सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि अल्लाह तआला के बारे में हमारा अक़ीदा क्या होना चाहिए । मुसलमान वह है जो अल्लाह तआला को माने उसकी इबादत करे, उसके हुक्म को माने और उसके मुताबिक़ अपनी ज़िन्दगी को ढाले। इस सोच या अक़ीदे कोतौहीद कहते हैं। यह तसव्वुर एक बुनियादी हैसियत रखता है और जब तक तौहीद का अक़ीदा इंसान की रग-रग में अच्छी तरह बस नहीं जाता उसका ईमान कामिल (पक्का) नहीं होता। तौहीद का मतलब है कि
- आजकल आमतौर पर साबुन या शैम्पू वग़ैरा जो मिलते हैं वह सब ख़ुशबूदार होते हैं लिहाज़ा उन्हें हरगिज़-हरगिज़ इस्तेमाल न करें लेकिन अगर कोई साबुन बिना ख़शबू वाला ख़ास तौर पर बना हुआ हो तो इस्तेमाल कर सकते हैं। ख़ुशबूदार साबुन के एक बार इस्तेमाल से सदक़ा और बार-बार इस्तेमाल करने से दम वाजिब हो जाता है।
- ख़ालिस ख़ुशबू मुश्क, अम्बर, ज़ाफ़रान, जावित्री, लौंग, इलायची, दारचीनी, सोंठ वग़ैरा खाना।
- ऐसी ख़ुशबू का आँचल में बाँधना जिसमें महक हो जैसे मुश्क, अम्बर, ज़ाफ़रान।
- सिर या दाढ़ी को किसी ख़ुशबूदार ऐसी चीज़ से धोना जिससे जुएँ मर जायें।
- मेहंदी का या और कोई ख़िज़ाब लगाना या गोंद वग़ैरा से बाल जमाना ।
- ज़ैतून या तिल का तेल चाहे उनमें ख़ुशबू न हो बालों या बदन में लगाना।
- किसी के बाल काटना, जूँ मारना, जूँ फेंकना, किसी को जूँ मारने का इशारा करना, कपड़ा उसके मारने को धोना या धूप में डालना यानि जूँ के मार डालने पर किसी तरह की मदद करना या कराना।
- आमतौर पर यह देखने में आया है कि लोग एहराम के दौरान धूल या बू वग़ैरा से बचने के लिये मुँह पर मास्क लगा लेते हैं जिससे मुँह और नाक ढक जाते हैं यह भी जाइज़ नहीं है।
- एहराम के दौरान मर्द को सिर और चेहरे का और औरत को सिर्फ़ चेहरे का कपड़े से पोंछना जाइज़ नही।
- ख़ुशबू बाल, बदन या कपड़ों में लगाना या किसी ख़ुशबू वाले रंग से रंगे कपड़े पहनना जो अभी ख़ुशबू दे रहे हों।
वो जाइज़ बातें जो एहराम में हराम हैं।
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
- बीवी से हमबिस्तरी करना, चूमना, गोद में लेना, गले लगाना, उसकी शर्मगाह पर नज़र करना, शहवत के साथ छूना, औरतों के सामने हमबिस्तरी या चूमने का ज़िक्र करना या बेहूदा बकवास करना।
- गुनाह हमेशा हराम थे अब और सख़्त हराम हो गये।
- किसी से दुनियावी लड़ाई झगड़ा करना।
- जंगल का शिकार ख़ुद करना, शिकार की तरफ़ शिकार करने का इशारा करना या किसी तरह बताना, बन्दूक या बारूद या उसके ज़बह करने का औज़ार देना, शिकार के अन्डे तोड़ना, पर उखाड़ना, पाँव या बाज़ू तोड़ना, शिकार का दूध दुहना, शिकार का गोश्त या अन्डे पकाना या भूनना, बेचना, ख़रीदना या खाना।
- अपने या दूसरे का नाख़ून कतरना या दूसरे से अपने कतरवाना, सिर से पाँव तक कहीं से कोई बाल किसी तरह अलग करना।
- मर्द को सिर ढकना या उस पर कुछ रखना यहाँ तक की अमामा बाँधना भी मना है और एहराम के दौरान सब नमाज़ें खुले सिर से पढ़ें।
- बुर्क़ा, दस्ताने या मोज़े वग़ैरा पहनना जो पैर के ऊपरी हिस्से को छुपाये और मर्दों को सिला हुआ कपड़ा पहनना।
- मर्द एहराम के दौरान ऐसा जूता या स्लीपर न पहने जिससे पैर के ऊपर की तरफ़ की उभरी हुई हड्डी ढक जाये। अगर ग़लती से एक दिन या एक रात पहन लिया तो दम वाजिब हो जाएगा।
- मर्द और औरत को एहराम की हालत में अपने चेहरे को इस तरह ढकना मना है कि कपड़ा चेहरे को लगे।
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ख़तना ख़तना सुन्नत है और इस्लामी पहचान है इससे मुस्लिम व ग़ैरमुस्लिम में फर्क़ मालूम होता है इसलिए इसे मुसलमानी भी कहते हैं। ख़तना का मतलब ...